भारत में हर साल सड़क दुर्घटना से बहुत सारे लोगों की मृत्यु हो जाती है जिसके बाद मुआवजा पाने में लोगों को बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है और तब भी उन्हें प्रयाप्त रूप से मुआवजा नहीं मिल पाता। इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब सड़क दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के आश्रितों को मुआवजे के निर्धारण के लिए नए मानक बनाए हैं।  नए मानकों के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने या घायल होने वाले स्वरोजगार वाले या जिनकी तय आमदनी हो, उन्हें मुआवजे देते वक्त उसकी आमदनी के साथ-साथ फ्यूचर प्रोस्पेक्ट (भविष्य में कमाई की संभावनाओं) पर भी अब विचार किया जाएगा।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वीइकल ऐक्ट, 1988 के तहत मुआवजा तय करने के मामले में सुनवाई के बाद यह फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के सामने यह सवाल आया था कि फिक्स सैलरी और अपना रोजगार करने वाले की अगर मौत हो जाती है तो उसके भविष्य की संभावना का आंकलन मुआवजे के लिए होगा या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ऐके सिकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण ने यह फैसला दिया। पीठ ने कहा कि दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति की आयु 40 से कम हो तो मृतक के वेतन का 50 फीसदी उसके फ्यूचर प्रोस्पेक्ट के तौर पर मिलना चाहिए। वहीं 40 से 50 वर्ष के बीच के मृतकों के लिए यह 30 फीसदी जबकि 50 से 60 वर्ष के बीच की आयु के मृतक के लिए यह 15 फीसदी होनी चाहिए।

वहीं अगर मृतक स्वरोजगार वाला हो या जिसकी निर्धारित आमदनी (टैक्स को छोड़कर) हो और उसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो तो उस वक्त जो वह कमा रहा था कि उसका 40 फीसदी अतिरिक्त मुआवजा मिलेगा। वहीं 40 से 50 वर्ष के बीच वाले लोगों के लिए यह 25 फीसदी और 50 से 60 वर्ष के बीच वाले मृतकों के लिए यह 10 फीसदी होगा।

इतना ही नहीं पीठ ने संपदा की क्षति के मद में 15 हजार रुपये, कंपनी के नुकसान के मद में 40 हजार रुपये और अंतिम संस्कार के लिए 15 हजार रुपये देने के लिए कहा है। हर तीन वर्ष में इन रकमों में 10 फीसदी का इजाफा होगा। पीठ ने कहा कि अदालत और ट्रिब्यूनल को मुआवजे की रकम तय करते वक्त व्यावहारिक रवैया अपनाना चाहिए जो वास्तविकता के करीब हो।

गौरतलब है कि इससे पहले मौजूदा मामले में मोटर ऐक्सिडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल ने मुआवजा तय करते हुए मृतक के भविष्य की संभावनाओं के मद्देजनर आमदनी में 30 फीसदी जोड़ा था। यह फैसला संतोष देवी बनाम नैशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के वाद में दिया गया है। इस फैसले को इंश्योरेंस कंपनी ने चुनौदी दी थी और कहा था कि मृतक सैलरी नहीं पाता था बल्कि बिजनस में था। हाईकोर्ट ने जब अपील खारिज की तो मामला सुप्रीम कोर्ट आया। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच को रेफर किया गया और अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया है।

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