यूपी में योगी सरकार ने सत्ता में आने के बाद प्रदेश की सभी सड़कों को पिछले साल 15 जून तक गड्ढा मुक्त करने का निर्देश दिया था। सरकार की कागज़ी आंकड़ों के मुताबिक सड़के गड्ढामुक्त भो हो गई लेकिन सवा साल से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी योगी सरकार का गड्ढा मुक्त अभियान आज भी पूरा नहीं हो सका है। सड़कों पर आज भी गड्ढे ही गड्ढे हैं और इन सड़कों पर गड्ढों की वजह से आए दिन सड़क हादसे होते हैं,  कुछ ऐसा ही हाल बांदा जिले की सड़कों का है।

जब बांदा में गड्ढामुक्त सड़कों का सच जानने के लिए हम बांदा से खजुराहो जा रही सड़क पर पहुंचे तो हमें बीच सड़क पर बने बड़े से गड्ढे में पानी भरा दिखा जिसमें बच्चे पानी के साथ अटखेलियां कर रहे थे। पूरी सड़क ही तालाब में तब्दील हो चुकी हैं और गांव के बच्चो के लिए ये सड़क नहीं स्वीमिंग पूल बन गई है।

हाल ये है कि इस सड़क पर बने पुल में भी कई गड्ढे बन गए हैं और उनमें पानी भर गया है। ऐसे में डर तो इस बात का है कि कहीं गड्ढे और पानी की वजह से पूरी की पूरी पुल ही ना धंस जाए। इसी बदहाल पुल और सड़क से होकर रोजाना हजारों की तादाद में लोग यहां से भगवान भरोसे गुजरते हैं।

बांदा में एनएच-34 की सड़क की हालत इतनी खराब है कि इससे गुजरने में डर लगता है। झांसी से मिर्ज़ापुर जाने वाली एनएच-34 में बांदा से मटौंध तक सड़क नजर ही नहीं आती। इस रोड में आज सिर्फ गड्ढे ही गड्ढे हैं। दिन में तो ये गड्ढे दिख जाते हैं, लेकिन रात के समय ये गड्ढे जरा भी दिखाई नहीं देते जिससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। लेकिन जिले के अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, शायद उन्हें किसी बड़े हादसे का इंतजार है

बांदा की स्योदा के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के सामने वाली सड़क जर्जर स्थिति में है। स्वास्थ्य केन्द्र के गेट के सामने ही सड़क पर बड़ा सा गड्ढा बन गया है जिसमें पानी भर गया है।

स्योधा की इस सड़क से निकल कर हम धुरेड़ी-धूरागढ़ रोड़ पर पहुंचे। पूरी सड़क ही खस्ताहाल है। इस गड्ढेवाली सड़क की वजह से गाड़ियों की रफ्तार इतनी कम हो जाती है कि वक्त की काफी बर्बादी होती है। वहीं इस रास्ते से होकर मरीजों को ले जाना मौत से जंग लड़ने के समान है। वहीं अगर डॉक्टर के पास पहुंचने की जल्दी हो तो कई बार ड़ॉक्टर के पास पहुंचने से पहले ही मरीजों की मौत तक हो जाती है।

                                                                                                             ब्यूरो रिपोर्ट,एपीएन

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