केरल का सबसे चर्चित सिस्टर अभया हत्याकांड की गुत्थी 28 साल बाद सुलझ गई है। इस कांड में शामिल पादरी और नन को उम्र कैद की सजा सुनाई है। साथ ही दोनों आरोपियों पर पांच-पांच लाख का जुर्माना भरने का आदेश भी दिया है।

विशेष अदालत ने मंगलवार को 69 साल के पादरी फादर थॉमस कोट्टूर और 55 साल की नन सिस्टर सेफी को दोषी ठहराया था।

हत्या के साथ-साथ विशेष अदालत ने दोनों को सबूत मिटाने का दोषी पाया था। वहीं फादर कोट्टूर को आपराधिक योजना बनाने को लेकर दोषी पाया गया है।

तिरुवनंतपुरम में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के जज के सनल कुमार ने बुधवार को 28 साल से लटका पड़ा केस पर फैसला सुनाया। राज्य का ये पहला ऐसा केस है जो सबसे अधिक समय तक चलता रहा।

केस इतने लंबे समय तक चलने के कारण किसी को इंसाफ की उम्मीद नहीं थी। पर कहते हैं ना भगवान के घर देर है अंधेर नहीं ये मुहावरा यहां पर बिल्कुल फिट बैठता है। कोर्ट के फैसले के बाद दुबई के होटल में काम करने वाले मतृका के भाई बीजू थॉमस ने बताया, मुझे समझ नहीं आ रहा है क्या कहूं, इतने लंबे समय बाद इंसाफ…खुश हूं मेरी बहन को आज इंसाफ मिला है। मेरे माता-पिता जन्नत से कोर्ट के इस फैसले को देख रहे होंगे।

तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक वर्गीस पी थॉमस ने बताया कि, केस को कई दफा बंद करने की कोशिश की गई। मैंने इसका विरोध भी किया, सर्विस से रिटायर होने में मुझे 10 साल बाकि थे पर विरोध में मैंने इस्तीफा दे दिया। आज इस केस को हल कराने में स्वयं भगवान का हाथ शामिल था। बता दें कि केस के दौरान थॉमस सीबीआई के डीएसपी थे। इन्होंने ही खुलासा किया था कि अभया ने आत्महत्या नहीं की है बल्कि हत्या हुई है।

गौरतलब है पीड़िता का परिवार बेहद गरीब था इस केस को वे आगे लेकर नहीं जा सकते थे इसलिए एक्शन काउंसिल ने इसे अंजाम तक पहुंचाया। हाई प्रोफाईल केस न होने के नाते इसे कई दफा बंद करने की कोशिश भी की गई है। पर सत्य तो सत्य ही होता है।

यहां से शुरू होती है अभया हत्या कांड की गाथा

बात है 26 मार्च 1992 की, 19 साल की प्री-डिग्री की छात्रा अभया कोट्टायम पिऊस टेन्थ कॉन्वेंट के होस्टल में रहती थीं ये होस्टल कनन्या कैथलिक चर्च चलाता था। अभया का इम्तिहान सर पर था। इसलिए उन्होंने अपनी रूममेट सिस्टर शर्ली को सुबह चार बजे जगाने के लि एकहा था। शर्ली 3 बजे उठ गई और अभया को 4 बजे जगा दिया। दोबारा निंद न आए इसिलए अभया ठंडे पानी से मुह धोने के लिए और बोतल में पानी भरने के लिए रोसई की तरफ गई।

अभया को रूम से किचन की तरफ जाते हुए आखिरी बार सिस्टर शर्ली ने ही देखा था। फिर वो कभी नहीं लौटी।

रसोई में प्रवेस करते ही अभया ने देखा फादर थॉमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और फादर पुट्ट्रीकायल अनैतिक स्थिति में हैं। तीनों अभया को देखकर डर गए कि कही वो ये बात होस्टल में किसी और को न बता दे।

victim

आरोपियों ने बिना मौका गवाएं मृतका पर हमला बोल दिया। फादर कोट्टूर ने उसका गला घोंटा और सिस्टर सेफी ने कुल्हाड़ी से उस पर वार किया। बाद में इन तीनों ने मिल कर उसे कॉन्वेंट के ही कुंए फेंक दिया।

आरोपियों से हाथा बाईं में अभया का चप्पल और पानी की बोतल किचन में फेका मिला था। पर मिली जानकारी के अनुसार सिस्टर सेफी ने उसे नष्ट कर दिया था।

इसतरह दोषी पहुंचे जेल

सुबह हुई तो अभया की तलाश शुरू हुई। खोज-बीन के बाद पता चला कि वो कुएं में मृत पड़ी है। इस केस को आत्महत्या का नाम दिया गया। जबकि पीड़िता का परिवार लगातार कहता रहा अभया कभी आत्महत्या नहीं कर सकती है।

पीड़िता का परिवार गरीब था, केस को वो आगे लेकर नहीं जा रहे थे। एन वक्त पर एक्शन काउंसिल की नजर कांड पर पड़ी। काउंसिल ने अभया को इंसाफ दिलाने की ठानी।

हत्याकांड की जांच पहले केरल पुलिस कर रही थी। मामले को कई बार दबाने की कोशिश की गई। इसी को ध्यान में रखते हुए कॉन्वेन्ट की प्रमुख मदर सुपिरियर के नेतृत्व में ननों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के करुणाकरन से मुलाकात की और मामले को सीबीआई को देने की मांग की। उनका कहना था कि पहले स्थानीय पुलिस और फिर क्राइम ब्रांच इस मामले की सही तरीके से जांच नहीं कर रही। उन्हें शक था कि अभया की हत्या हुई है।

साल 1993 में तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक वर्गीस पी थॉमस की अगुवाई में सीबीआई ने केस की जांच शुरू की और साल के आखिर तक टीम इस नतीजे पर पहुंची कि ये आत्महत्या का मामला है। यहां पर सीबीआई को कई बार दबाने की कोशिश की गई।

जब हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले की सही तरीके से जांच की जाए तब जा कर इसकी जांच में गंभीरता आई। कई बार सबूतों के साथ और यहां तक कि नार्को-एनालिसिस की रिकॉर्डिंग के साथ भी छेड़छाड़ करने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया।

इस मामले में कम से कम तीन बार ऐसा हुआ जब सबीआई की टीम ने कहा कि सिस्टर अभया ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उसकी हत्या हुई थी। लेकिन गुनाहगारों तक पहुंचने में टीम नाकाम रही।

चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट के साथ-साथ उच्च अदालतों ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार करने से मना कर दिया। साल 2008 में हाई कोर्ट ने सीबीआई को रिपोर्ट सौंपने के लिए तीन महीने का वक्त दिया।

सीबीआई ने कॉन्वेंट के बगल में रहने वाले संजू मैथ्यू नाम के एक व्यक्ति को ढूंढ निकाला जिन्होंने धारा 164 के तहत गवाही दी कि 26 मार्च 1992 की रात उन्होंने फादर कोट्टूर को होस्टल परिसर में देखा था।

इसके बाद सीबीआई की टीम ने फादर थॉमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और फादर पुट्ट्रीकायल को गिरफ्तार किया। हालाँकि गवाह संजू मैथ्यू बाद में अपने बयान से मुकर गया।

सीबीआई की टीम ने अदरक्का राजू नाम के एक चोर को भी पकड़ा जिसने बताया कि उसने उस रात दो पादरियों को होस्टल परिसर में देखा था।

एक्शन काउंसिल की मुहिम रंग लाई

कई खबरों को पढ़ने के बाद पता चला कि, सीबीआई को पहले दिन से पता था कि ये हत्या का मामला है पर अधिकारी कोई भी पेडिंग केस नहीं रखना चहाते थे, वे बिना किसी अंत के केस का अंत करना चाहते थे। पर एक्शन काउंसिल लगातार लड़ती रही। और अभया केस को इंसाफ के दरवाजे तक ले गई।

बता दें कि, एक्शन काउंसिल मानव अधिकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था है।

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