रोहिंग्या मुसलमानों के बाद अब बांग्लादेशियों पर तलवार लटकने लगा है। असम में 20 लाख बांग्लादेशियों पर निर्वासन की तलवार लटक गई है। असम सरकार 31 दिसंबर को नागरिकता सूची जारी करेगी। इसको लेकर असम में तनाव पैदा हो गया है। नागरिक राष्ट्रीय पंजी (एनआरसी)  के मुद्दे पर पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है। ऐसे में पूरे देश की निगाहे 31 दिसंबर पर टिकी हुई है जब लाखों लोगो की किस्मत का फैसला होगा। जी हां असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को भारत की नागरिकता दिए जाने का मुद्दा एक अहम पड़ाव पर पहुंचने वाला है।  इस बीच नेशनल रजिस्ट्रॉर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के पहले ड्राफ्ट की घोषणा होने वाली है।

इसको लेकर असम पुलिस ने राज्य में संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की है और कहा है कि जरूरत पड़ने पर सेना की मदद ली जा सकती है। एकीकृत कमान की उच्च स्तरीय बैठक में शामिल होने के बाद महानिदेशक मुकेश सहाय ने कहा कि चंद एनआरसी सेवा केंद्रों के कुछ इलाके संवेदनशील पाए गए हैं और पुलिस उन क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए प्रयास कर रही है।  उन्होंने कहा, ‘‘स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों की अतिरिक्त 85 कंपनियां दो जत्थों में राज्य में पहुंच चुकी है।’’

असम में तनाव के माहौल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां पर अब तक 60 हजार पुलिसकर्मी और पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती की जा चुकी है। असम सरकार का कहना है कि वैध नागरिकों की लिस्ट जारी करने के बाद सरकार अवैध प्रवासियों की पहचान करेगी और उन्हें वापस अपने देश (बांग्लादेश, म्यांमार) भेजा जाएगा।  राज्य के मुस्लिम नेताओं का कहना है कि एनआरसी उन्हें घर से बेघर करने की एक साजिश है। भारत का मूल निवासी होने के लिए सभी नागरिकों को इस बाबत एक प्रमाण पत्र सरकारी कर्मचारियों को मुहैया कराना पड़ेगा कि वह या उनके पूर्वज भारत में 24 मार्च 1971 के पहले से रहते आ रहे हैं। असम के कई मुसलमानों को ऐसे प्रमाण पत्र ढूंढऩे में परेशानी हो रही है।

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