सुप्रीम कोर्ट ने एक समयबद्ध अवधि के भीतर दया याचिकाओं के निपटारे के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया के निर्धारण की याचिका पर नोटिस जारी किया ।

उच्चतम न्यायालय ने दया याचिका को समयबद्ध तरीके से निपटाने के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया और दिशानिर्देश तैयार करने की याचिका पर आज नोटिस जारी किया।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने अधिवक्ता कमल मोहन गुप्ता की ओर से अधिवक्ता शिव कुमार त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें समयबद्ध तरीके से दया याचिकाओं का,निपटने की माग करते हुए कहा कि दया याचिकाओं को मनमाने तरीके से निपटाया जा रहा है।

इसके अलावा, इन याचिकाओं के निपटान में अनुचित देरी होती है, और कभी-कभी अपराधी उस देरी का लाभ उठाते हैं और अपनी मौत की सजा को उम्रकैद में बदलवा लेते हैं, जिसे पीड़ित परिवार और समाज मे सार्वजनिक अशांति को बढ़ावा मिलता है और लोग धोखा महसूस करते हैं जिसे समाज में न्याय के प्रति संदेह पैदा होता हैं।

याचिकाकर्ता ने आगे कहा है कि गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री शशि भूषण ने मुंबई के एक निवासी वत्स राज की आरटीआई के जवाब में  ने कहा था कि “क्षमा याचना की जांच के लिए कोई लिखित प्रक्रिया नहीं है। अनुच्छेद 72 के तहत मौत की याचिकाओं को निलंबित करना, रोकना है बस । ”

इसलिए जब भी से राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति के बारे में चर्चा होती है तो निम्न बाते सामने आती है जेसे

1-कोई व्यक्तिगत सुनवाई नहीं होती है|

2- एक निर्धारित प्रक्रिया की अनुपस्थिति|

3-आवेदक एक साधारण आवेदन दायर कर सकता है|

4- अपेक्षित जानकारी प्रदान नहीं की जाती है|

इसलिए एक निर्धारित प्रारूप की जरूरत है

याचिकाकर्ता ने यूएसए और यूके के उदाहरणों का हवाला दिया है जहां दया याचिकाओं के लिए आवेदन करने के लिए एक निर्धारित प्रारूप है।

यह भी बताया गया है कि पिछले अनुभव से यह कहा जा सकता है कि अनुच्छेद 72 के तहत क्षमा प्रदान करने की शक्ति वास्तव में गृह मंत्रालय द्वारा प्रयोग की जाती है और इसलिए मंत्रालय दया याचिकाओं के निपटान में देरी के लिए जिम्मेदार है। इसमे अनुच्छेद 14 के उल्लंघन में हमेशा मनमानी और भेदभाव की संभावना रहती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here