अभी चार साल पहले की ही तो बात थी कि बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अमित शाह की रणनीति की बदौलत पिछले लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था। 80 सीटों वाले देश के इस सबसे बड़े प्रदेश में बीजेपी ने 71 सीटें जीतीं थीं जबकि उसकी सहयोगी अपना दल को दो सीटें मिलीं. कांग्रेस की ओर से सिर्फ सोनिया-राहुल गांधी ही अपनी सीट बचा सके जबकि सपा को महज 5 सीटें मिलीं. मायावती का तो खाता भी नहीं खुला था। इसके साथ ही यूपी में बीजेपी की लहर और मजबूत हुई। मोदी सरकार बनने के तीन साल बाद 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुए तब एक बार फिर मोदी और शाह का जादू चला और विपक्ष धूल चाटता नजर आया. 403 विधानसभा सीटों वाले इस प्रदेश में बीजेपी को अकेले ही 312 सीटें मिलीं. सपा-कांग्रेस गठबंधन और मायावती की बीएसपी चुनाव मैदान में औंधे मुंह नजर आए.

बीजेपी ने 14 साल का सत्ता का वनवास खत्म कर जब प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई तो उसकी बागडोर गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई. आदित्यनाथ को ये जिम्मेदारी दी गई कि वे यूपी को विकास की राह पर ले जाएं ताकि 2019 के चुनावों के लिए मजबूत जमीन तैयार हो सके और बीजेपी 2014 का जादू वहां दोहरा सके.

लेकिन पार्टी हाईकमान की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार के एक साल पूरा होने से पहले ही अपनी ही गोरखपुर सीट सपा के हाथों गंवा बैठे। पार्टी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट भी नहीं बचा सकी और सपा-बीएसपी ने साथ मिलकर सीएम योगी और बीजेपी को एक साथ दो बड़े झटके दे दिए।

गोरखपुर-फूलपुर के झटकों से पार्टी अभी उबरी भी नहीं थी कि कैराना और नूरपुर के उपचुनाव भी उसके लिए बुरी खबर लेकर आए हैं। क्यों कि दोनों सीटे भी बीजेपी के हाथ से निकल गए हैं। नूरपुर विधानसभा सीट पर सपा को जीत मिली है।

ऐसे में योगी सरकार के कामकाज  पर सवाल उठना तय है….खासकर सीएम योगी को हाईकमान को कई मुश्किल सवालों का जवाब देना पड़ सकता है।

ब्यूरो रिपोर्ट एपीएन

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