देशभर में प्लास्टिक के इस्तेमाल के खिलाफ मुहिम चल रही है। कई जगह तो प्लास्टिक उत्पादों और पॉलीथिन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। उत्तराखंड भी उनमें से एक है। प्रदेश में प्लास्टिक के इस्तेमाल के खिलाफ चलाई गई मुहिम  का असर भाई-बहनों के प्यार  के प्रतीक के त्योहार रक्षाबंधन पर भी नजर आ रहा है। भाइयों की कलाइयों पर सजने वाली राखियों के इस्तेमाल में इस बार प्लास्टिक के इस्तेमाल में सावधानी बरती जा रही है। कहीं कहीं तो राखियों में बिल्कुल भी प्लास्टिक और उसके उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

रक्षाबंधन नजदीक है लिहाजा बाजार में अनेकों तरह की राखियों की धूम है। बाजार में तरह  तरह की राखियां सज गई हैं। हल्द्वानी में भी तरह तरह की राखियां बनाई जा रही हैं। महिलाएं  भी राखियां बनाने में जुटी हैं। साथ ही वो अपने उत्पाद के जरिए एक संदेश भी दे रही हैं।

प्लास्टिक और पॉलीथिन मुक्त का संदेश देते हुए बनाई जा रही इन राखियों में ट्विलिग पेपर का इस्तेमाल  किया जा रहा  है। राखियों में प्रयोग होने वाले केशमेंट धागे को हल्दी में डुबा कर बनाया गया है, तो पैकिंग में भी पॉलीथिन का इस्तेमाल नहीं किया गया है। महिलाओं का ये ग्रुप पिछले कई सालों से राखियां बना रहा है। धीरे-धीरे इनकी पहचान बन गई है। पहचान बनी है तो इनकी राखियों की मांग भी बढ़ गई है। यहां 20 महिलाएं तो रेगुलर काम करती हैं। मांग के हिसाब से और महिलाओं को भी लगाया जाता है। सामान की खरीदारी में भी विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि राखियों की कीमतें कम से कम रखी जा सकें।

महिलाओं के इस समूह द्वारा तैयार राखियों के नाम भी लोगों को आकर्षित करते हैं। इनमें कुंदन राखी, केशमेंट राखी, कलेवा राखी, स्माइल राखी आदि शामिल हैं। इन राखियों की कीमत 5 रुपये से लेकर 30 रुपये तक है जो बाजार में बिक रही महँगी राखियों से कहीं सस्ती हैं और मनमोहक भी हैं। भाइयों की कलाइयों पर सजने वाली राखियां इन बहनों को आर्थिक संबल भी प्रदान कर रही हैं। साथ ही साथ पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंच रहा है। पर्यावरण के प्रति इनकी जागरूकता ने समाज में एक मिशाल भी कायम की है। उम्मीद है कि भाई-बहन के प्यार के प्रतीक राखी के त्यौहार में इन महिलाओं द्वारा बनाई गयी राखियां इस प्यार को और मजबूती देने का काम करेंगी।

एपीएन ब्यूरो

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