आज राष्ट्रीय गणित दिवस है। ये दिन उन महान व्यक्तियों को समर्पित है जिन्होंने गणित की दुनिया में महारत हासिल की है। और देश का नाम रौशन किया है। आज हम यहां एक ऐसे गणित प्रेमी की बात कर रहे हैं। जिन्हे गणित से इतना प्यार था कि बाकी के विषयों में फेल हो जाते थे। उनका नाम श्रीनिवास रामानुजन था।

रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु (उस वक्त के मद्रास) में हुआ था। इन्होंने ने महज 32 साल के जीवन में गणित की 4 हजार से ज्यादा ऐसी प्रमेय (थ्योरम) पर रिसर्च की, जिन्हें समझने में दुनियाभर के गणितज्ञों को भी सालों लगे। 

गणित से प्रेम के कारण वे 11वीं में गणित को छोड़ बाकी सभी विषयों में फेल हो गए। अगले साल प्राइवेट परीक्षा देकर भी 12वीं पास नहीं कर पाए। जिस स्कूल में वो 12वीं में दो बार फेल हुए आज उसका नाम रामानुजन के नाम पर है।

12 वी में फेल होने के बाद घर का खर्च चलाने के लिए मद्रास पोर्ट कोर्ट में क्लर्क की नौकरी करने लगें। यहां भी इनका प्रेम गणित के साथ बना रहा। नौकरी करते-करते रामानुजन ने गणित के फॉर्मूले का एक रजिस्टर बना दिया। 16 साल की उम्र में शादी जानकी अम्माल से हुई। इनके गणित प्रेम को कम एक स्त्री भी नहीं कर पाई।

फॉर्मूले बनाते हुए रामानुजन ने खत के जरिए कुछ फॉर्मूले को कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी को भेजे। हार्डी रामानुजन के फॉर्मुले से इनते खुश हुए की उन्हें लंदन बुला लिया। उनके मेंटर बने दोनों ने मिलकर गणित के कई रिसर्च पेपर पब्लिश किए। उनके रिसर्च को अंग्रेजों ने भी सम्मान दिया। उन्हें रॉयल सोसायटी में जगह मिली। वो ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।

पर रामानुजन को को लंदन की हवा रास नहीं आई उनकी तबियत लगातार खराब रहने लगी। मजबूरन उन्हें भारत लौटना पड़ा उन्हें टीबी हो गई और एक साल की बीमारी के बाद अप्रैल 1920 में उनका निधन हो गया।

गणित को मुट्ठी में करने वाले रामानुजन को उनके ही समाज के लोगों ने तिरस्कार किया। उनकी मौत के बाद पंडितों ने मुखाग्नि देने से इंकार दिया क्योंकि उन्होंने समुद्री यात्रा से लौटने के बाद प्रायश्चित के लिए रामेश्वरम् की यात्रा नहीं की थी।

2015 में रामानुजन के जीवन पर ‘द मैन हू न्यू इन्फिनिटी’ फिल्म भी बनी। फिल्म में देव पटेल ने उनका किरदार निभाया था। ये फिल्म रॉबर्ट कैनिगल की किताब ‘द मैन हू न्यू इन्फिनिटी: अ लाइफ ऑफ द जीनियस रामानुजन’ पर आधारित थी।

साथ ही उनकी मॉक थीटा फंक्शन को 2012 में प्रोफेसर केन ओनो ने सही ठहराया, जो ब्रिटेन की सबसे प्रतिष्ठित रॉयल सोसायटी का सबसे कम उम्र का फेलो बना।

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