जब पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाई तो मैंने भी ये इच्छा जताई थी कि इस मामले को हमे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाना चाहिए। अगले दिन शाम को हमारी विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज जी का मेरे पास फोन आया और उन्होंने बताया की कल तुम कह रहे थे न कि हमे इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाना चाहिए तो फिर चलो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में तुम हमारे साथ चलोगे। और मै भी इस मामले के लिए तैयार था। यह मामला वियना संधि का भी उल्लंघन था। वियना सम्मेलन, राजनयिक सम्बन्धों पर एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जो सम्प्रभु देशो के बीच राजनयिक सम्बन्धों के लिए एक रुपरेखा को परिभाषित करती है एवं राजनयिकों को मेजबान देश में विशेष अधिकार दिए गए है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की जो संरचना है पहले हमे उसे समझना होगा। यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है। अंतराष्ट्रीय न्यायालय में कुल 15 न्यायाधीश होते है। जब किसी दो राष्ट्रों के बीच विवाद हो तो निर्णय हेतु अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष अपना मामला ला सकते है। यहां एक दिलचस्प चीज़ है। अगर विवादित मामलो के राष्ट्रों को लगता है कि न्यायाधीशों में उनकी राष्ट्रीयता का न्यायाधीश नही है तो प्रक्रिया के तरह वह देश जिसका न्यायालय में प्रतिनिधित्व नही है। अपनी राष्ट्रीयता के न्यायाधीश को नियुक्त कर सकता है। अगर देखा जाये तो विधिक प्रक्रिया में यह ‘Conflict of Interest’ का मामला है। लेकिन अंतराष्ट्रीय न्यायालय की यह प्रक्रिया है।।वह सम्बन्धित वादकारी देश को यह आजादी देता है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलित समस्त 193 राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकते है। अंतराष्ट्रीय न्यायालय की अधिकारिक भाषा फ्रेंच और अंग्रेजी है। सुनवाई के दौरान वादकारी देशो को उनकी भाषा में अनुवाद की सुविधा उपलब्ध है। न्यायालय तीन प्रकार के क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है –
1. Compulsory Jurisdiction
2. Specific Jurisdiction
3. Special Agreement Jurisdiction
वादकारी देश सामान्यत: अपने विदेश मंत्री के माध्यम से या नीदरलैंड में मौजूद अपने राजदूत के माध्यम से रजिस्ट्रार से सम्पर्क करते है। जो कि कोर्ट में एक एजेंट के माध्यम से प्रतिनिधित्व प्रदान करते है। जैसे कि हमारे मामले में हमारे एजेंट भारतीय विदेश मंत्रालय के सह – सचिव तथा पाकिस्तान के एजेंट उनके अटोर्नी जनरल थे। एडवोकेट का नाम Pleading में नही होता है बल्कि कार्रवाई देश के नाम से होती है। एजेंट द्वारा Pleading पर हस्ताक्षर किये जाते है. पहले प्रार्थी/अपीलार्थी देश अपना Memorial of Facts दाखिल करेगा फिर विपक्षी देश उत्तर में अपना Reply प्रस्तुत करेगा। इसके बाद प्रार्थी देश अपना Rejoinder प्रस्तुत करेगा एवं उत्तर में विपक्षी देश अपना Reply – Rejoinder प्रस्तुत करेगा। इसके बाद प्रार्थी अपना Oral – Submission प्रस्तुत करेगा फिर विपक्षी उत्तर में अपना Reply on Oral – Submission प्रस्तुत करेंगे। जिसके बाद सुनवाई की तारीख और अपना पक्ष रखने के लिए समय नियत होगा और दोनो पक्ष बहस प्रस्तुत करेंगे जिस पर न्यायालय निर्णय देगा। बहस के दौरान यदि न्यायाधीश – सम्बन्धित देश के प्रतिनिधियों से प्रश्न पूछना चाहते है तो वो उन्हें लिख लेते है और कार्रवाई पूरी होने के बाद उन्हें पूछते है।
अब जो हमारा मामला है उसके तथ्य इस प्रकार है – कुलभूषण जाधव भारतीय नौसेना का पूर्व अधिकारी है और इरान में कार्गो का व्यापार करते थे। पाकिस्तान ने उन्हें जासूसी और आतंकी गतिविधियों में पाकिस्तान सुरक्षाबालों द्वारा पाकिस्तान – इरान सीमा पर गिरफ्तार किया गया एवं पाकिस्तान सैन्य अदालत ने उन्हें उनके Confession के आधार पर सबूतों एवं वैधानिक तरीके से मौत की सजा दी गई है। भारत ने इन आरोपों का खंडन किया और पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि जाधव का इरान से अपहरण किया गया है एवं भारत को बदनाम करने के उद्देश्य से उनपर झूठे आरोप लगाये गये है। पाकिस्तान ने वियना संधि का उल्लंघन किया है। संधि की अनुसार अगर कोई देश किसी विदेशी नागरिक को गिरफ्तार करता है तो सम्बन्धित देश के दूतावास को तुरंत इसकी सूचना देनी पड़ेगी अर्थात गिरफ्तार किये गये विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुंच देनी होगी।
भारत को जाधव की सूचना काफी देर से दी गई एवं जब भारतीय दूतावास ने पाकिस्तान से जाधव से मिलने की मांग की तो पाकिस्तान ने इंकार कर दिया। अप्रैल – 2017 में पाक सैन्य अदालत ने बिना समुचित अवसर दिए जाधव को मौत की सजा सुनाई। मई 2017 में भारत ने जाधव की मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की अपील की। जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। जुलाई 2017 में पाकिस्तान ने जाधव को दूतावास मदद पहुँचाने की भारत की मांग ख़ारिज कर चुका था
पाकिस्तान ने जुलाई 2018 में दूसरा counter – memorial दाखिल किया। जिसपर फिर दोनों देशो ने अपना पक्ष रखा और जुलाई – 2019 में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने फैसला सुनाया जो भारत के पक्ष में आया। फैसले में जाधव की फांसी पर रोक लगा दी गई एवं कहा गया कि पाकिस्तान को भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को सुनाई गई फंसी की सजा पर प्रभावी तरीके से फिर से विचार करना चाहिए और राजनयिक पहुंच प्रदान करनी चाहिए।
[ यह लेख , श्री हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा ‘दत्तोपंत ठेंगडी व्याख्यानमाला’ के तहत अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद् के तत्वाधान में ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मेरे अनुभव एवं कुलभूषण जाधव मामले के न्यायिक विश्लेष्ण’ विषय पर दिए गये व्याख्यान का सम्पादित अंश है। By – रोहित श्रीवास्तव, एडवोकेट देहरादून ]