तीन तलाक के खिलाफ मुस्लिम महिलाएं अब खुलकर सामने आ रही हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े हुए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) ने इस मामले के खिलाफ एक अभियान चलाया है। एमआरएम ने कहा है कि इसे खत्म करने के लिए करीब 10 लाख मुस्लिमों ने दायर की गई याचिका पर अपने हस्ताक्षर किये हैं। समर्थन करने वालों में अधिकतर मुस्लिम महिलाएं हैं।

एमआरएम के राष्ट्रीय समन्वयक मोहम्मद अफजल ने कहा, ‘भाजपा की यूपी में हुई बड़ी जीत, देवबंद जैसे मुस्लिम बहुल इलाके में उनका जीत जाना यह दिखाता है कि मुस्लिम महिलओं की आवाज उनके साथ हैं और तीन तलाक पर के खिलाफ लिए गए इस फैसले के साथ खड़ी हैं।’

रिपोर्ट के मुताबिक, एमआरएम की ओर से जिस पिटीशन पर हस्ताक्षर कराये जा रहे हैं, उसमें कहा जा रहा है कि कृपया इसको धर्म से जोड़कर न देखा जाए क्योंकि यह एक सामाजिक समस्या है। बता दें कि कई महिलाओं ने तीन तलाक को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी पिटीशन दायर चुकी हैं।

हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इसका बचाव करते हुए कहा कि किसी महिला की हत्या हो, इससे बेहतर है कि उसे तलाक दिया जाए। AIMPLB का कहना है, “धर्म में मिले हकों पर कानून की अदालत में सवाल नहीं उठाए जा सकते।”

यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के पीछे एक वजह तीन तलाक का मुद्दा भी बताया जा रहा है। उसे अपने दम पर तीन सौ से ज्यादा सीटें मिली हैं। भाजपा ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी जीत हासिल की। पार्टी नेताओं ने प्रचार के दौरान इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा था।

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने फरवरी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “सरकार यूपी चुनाव के बाद तीन तलाक पर पाबंदी लगाने का बड़ा कदम उठा सकती है। केंद्र सरकार इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए कमिटेड है। हम महिलाओं के लिए इंसाफ, बराबरी और गरिमा के 3 बिंदुओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला उठाएंगे।

उन्होने कहा, “इस मुद्दे का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन इससे महिलाओं की गरिमा और उनका सम्मान जरूर जुड़ा हुआ है। सरकार आस्था का सम्मान करती है, लेकिन इबादत और सामाजिक बुराई एक साथ नहीं रह सकती।”

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