विदेशी पर्यटकों को रिझाने के लिए मोदी सरकार तमाम कोशिशें कर रही है। लेकिन टैक्स सारी कोशिश पर पानी फेर रहा है। भारत में टैक्स की ऊंची दर पर्यटन उद्योग पर भारी पड़ रही है। हाल ये है कि विदेशी पर्यटकों को होटल में ठहरने के लिए सबसे ज्यादा टैक्स भारत में चुकाना पड़ता है। जबकि दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों में होटलों पर टैक्स की दर अपेक्षाकृत कम है। इसके चलते बहुत से पर्यटक दूसरे देशों का रुख कर रहे हैं। पर्यटन उद्योग खासकर होटलों पर टैक्स का मुद्दा जीएसटी काउंसिल की बैठकों में भी उठा है।

काउंसिल की फिटमेंट कमेटी ने भारत के साथ-साथ एक दर्जन से अधिक विकसित और विकासशील देशों में होटलों पर टैक्स का अध्ययन किया है। फिटमेंट कमेटी ने इसके लिए अंतरराष्ट्रीय होटल चेन हयात के विभिन्न देशों में रूम रेंट और उन पर लागू होने वाले टैक्स की दर की रुपये में गणना की। इससे ये बात सामने आयी कि भारत में होटलों पर जीएसटी की दर काफी अधिक है। अन्य देशों की तुलना में भारत में होटल का टैरिफ कम होने के बावजूद टैक्स की दर अधिक होने की वजह से पर्यटकों को अधिक राशि चुकानी पड़ती है।

गोवा और केरल जैसे प्रदेशों ने काउंसिल की बैठकों में होटलों पर टैक्स कम रखने की वकालत भी की थी, लेकिन इसे नहीं माना गया। इन राज्यों की दलील थी कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे- थाईलैंड और सिंगापुर में होटलों पर टैक्स की दर काफी कम है, इसलिए पर्यटक उन देशों का रुख कर रहे हैं और भारत के हाथ से कारोबार निकल जाता है। भारत में फाइव स्टार होटलों पर 28 प्रतिशत जीएसटी वसूला जाता है। इससे न सिर्फ विदेशी पर्यटकों पर असर पड़ रहा है, बल्कि घरेलू पर्यटक भी पड़ोसी एशियाई देशों का रुख कर रहे हैं। इससे देश की विदेशी मुद्रा आय पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हालांकि वित्त मंत्रालय की दलील है कि जीएसटी लागू होने से पहले होटलों पर टैक्स की दर 28 फीसदी से अधिक थी।

ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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