उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में आचार संहिता उल्लंघन के मामले 2012 विधानसभा चुनाव से ज्यादा सामने आए हैं। आदर्श आचार संहिता के पालन के लिए चुनाव आयोग द्वारा हर संभव कोशिश की जाती है लेकिन इसके उल्लंघन के मामले में सख्त कानूनी कार्रवाई के प्रावधान ना होने से राजनीतिक दल खूब फायदा उठाते हैं। राजनीतिक दल और नेताओं के पास ऐसे मामलों से निपटने के कई हथकंडे होते हैं। इन हथकंडों को आजमा कर ये बिना अदालत में पेश हुए भी बरी हो जाते हैं।

आचार संहिता के उल्लंघन में हम अगर प्रदेश की प्रमुख पार्टियों की बात करें तो इस मामले में कांग्रेस ने सबको पीछे छोड़ दिया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सहित मुख्यमंत्री हरीश रावत भी उल्लंघन के दोषी पाए गए हैं। इन दोनों नेताओं पर प्राथमिकी भी दर्ज हुई है। उल्लंघन के मामलों में बीजेपी भी पीछे नहीं है। बीजेपी कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर पर है। चुनाव प्रचार के अंतिम 10 दिनों में आचार संहिता के उल्लंघन के कुल 368 मामले सामने आए हैं। इनमें से 138 मामलों में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। चुनाव प्रचार के पुराने तरीकों के अलावा सोशल मीडिया पर हुए प्रचार की वजह से भी आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में वृद्धि हुई है। 

उल्लंघन के 368 मामलों में से 282 मामले अन्य श्रेणी में दर्ज किए गए है। इनमे सोशल मीडिया के द्वारा प्रचार से उल्लघंन के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। आचार संहिता के उल्लघंन के मामले में बिना अनुमति के सभा आयोजित करने के 44 मामले,प्रलोभन देने के 20 मामले,वाहनों के दुरुपयोग के 18 मामले हैं। आचार संहिता उलंघन के सबसे ज्यादा 30 मामले ऊधमसिंह नगर में देखने को मिले हैं। दूसरे नंबर पर पौड़ी से 20 मामले,नैनीताल से 16 हरिद्वार और चमोली से 12-12 मामले सामने आए हैं। देहरादून और बागेश्वर से 11- 11 मामले,चंपावत से 8, उत्तरकाशी से 5, रुद्रप्रयाग से 4,अल्मोड़ा पिथौरागढ़ और टिहरी से 3-3 मामले सामने आए हैं।

उल्लंघन के मामलों के अलावा चुनावों की घोषणा के साथ लागू हुई आचार संहिता में चुनाव प्रचार ख़त्म होने तक 2.42 करोड़ की नगदी,  2.5 करोड़ की शराब और 36 लाख के मादक पदार्थ भी पकड़े गए हैं। यह आंकड़े छोटे से राज्य में प्रलोभन देने की बड़ी गड़बड़ी की ओर इशारा कर रहे हैं। उत्तराखंड के सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग की सख्ती के बावजूद अपनी तरफ से जनता को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

आचार संहिता उल्लंघन के बढ़ते मामले निर्वाचन आयोग के लिए भी चिंता का विषय है। आयोग को नियमों में बदलाव के साथ कड़े कानून बनाए की दिशा में पहल करनी चाहिए। राजनीतिक दलों को भी नियम और कानून की धज्जियाँ उड़ा कर लोकतंत्र में सत्ता तक पहुँचने की होड़ से बचना चाहिए।

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