कांग्रेस का कहना है कि राज्यसभा के सभापति को कानून और संविधान की एक जानी-मानी हस्ती सहित कम से कम तीन लोगों की कमेटी बना कर महाभियोग प्रस्ताव की जांच करानी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने ये फैसला कमेटी बनाने या उसकी ओर से रिपोर्ट आने से पहले ही ले लिया. अदालत में इसी बात को चुनौती दी गई है.

प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव को उपराष्ट्रपति द्वारा खारिज करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका कांग्रेस ने वापस ले ली है। इसके बाद 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने इसे खारिज घोषित कर दिया है।

कांग्रेसी सांसदों की ओर से कपिल सिब्बल ने पांच जजों की पीठ के गठन पर सवाल उठाए। और जब पांच जजों की पीठ ने संवैधानिक पीठ के गठन को लेकर प्रशासनिक ऑर्डर की कॉपी शेयर करने से इंकार कर दिया तो याचिका वापस ले ली गई।  सिब्बल ने कहा कि याचिका को अभी नंबर नहीं मिला. एडमिट नहीं हुई, लेकिन रातों रात ये पीठ किसने बनाई? इस पीठ का गठन किसने किया ये जानना जरूरी है.

जस्टिस सीकरी की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि उनके पास प्रशासनिक आदेश वाली कॉपी नहीं है. पांच जजों की बेंच ने दलील दी कि मामले की सुनवाई मेरिट पर होनी चाहिए.

सिब्बल ने कहा कि सीजेआई इस मामले में प्रशासनिक या न्यायिक स्तर पर कोई आदेश जारी नहीं कर सकते. किसी  मामले को संविधान पीठ को रेफर किया जाता है, जब कानून का कोई सवाल उठा हो, यहां फिलहाल कानून का कोई सवाल नहीं है। उन्होंने कहा कि ये सिर्फ न्यायिक आदेश के जरिए ही संविधान पीठ को भेजा जा सकता है, प्रशासनिक आदेश के जरिए नहीं। सिब्बल ने कहा कि पांच जजों की पीठ के गठन से संबंधित आदेश मिलने के बाद वो इसे चुनौती देने पर विचार करेंगे।

संविधान के जानकारों के मुताबिक इस मामले में कानूनी पेंच तो पहले भी यही था कि आखिर चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का मामला है, लिहाजा वो तो इसे सुन नहीं सकते. इसके अलावा वरिष्ठता क्रम में नंबर दो यानी जस्टिस चेलमेश्वर, नंबर तीन जस्टिस रंजन गोगोई, नंबर चार जस्टिस मदन बी लोकुर और नंबर पांच जस्टिस कुरियन जोसफ ने प्रेस कांफ्रेंस कर चीफ जस्टिस के खिलाफ अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए थे. इस वजह से वो सभी इस मामले में पक्षकार बन चुके हैं. ऐसे में नंबर छह से ही बात शुरू हुई। याचिका पर सुनवाई जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस आदर्श गोयल की बेंच कर रही थी। वरिष्ठता में ये न्यायघीश 6 से 10 नंबर पर आते हैं।

इससे पहले सोमवार को कांग्रेस सांसदों की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने जस्टिस चेलमेश्वर और एसके कौल की बेंच के सामने मामले की फौरन लिस्टिंग की मांग की थी। सिब्बल ने दलील दी थी कि राज्यसभा के सभापति सिर्फ इसी आधार पर महाभियोग प्रस्ताव रद्द नहीं कर सकते कि दुर्व्यवहार साबित नहीं हुआ। जिस पर जस्टिस चेलमेश्वर ने उन्हें लिस्टिंग के लिए सीजेआई के पास जाने को कहा था क्योंकि मास्टर ऑफ रोस्टर सीजेआई ही बनाते हैं। साथ ही जस्टिस कौल ने भी कहा कि  बेहतर होगा कि सीजेआई के पास इसे ले जाएं। बाद में जस्टिस चेलमेश्वर ने  इस अनुरोध पर सुनवाई करने के लिए मंगलवार सुबह साढ़े 10 बजे का समय तय किया था लेकिन इस बीच सीजेआई ने शाम साढ़े सात बजे आदेश जारी कर मामला 5 जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया।

वैसे कांग्रेस का एक धड़ा तो पहले से ही महाभियोग के प्रस्ताव के खिलाफ था लेकिन कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद इस प्रस्ताव के पक्ष में थे और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उनकी बात मान ली।  हालांकि अब संविधान विशेषज्ञों से लेकर राजनीतिक विश्लेशकों के बीच  कांग्रेस की किरकरी हो रही है। संविधान विशेषज्ञों ने इस पूरे मामले को दलगत राजनीति से प्रेरित बताया।

वैसे ये पहला मौका नहीं है जब कपिल सिब्बल के चलते पार्टी की फजीहत हुई हो। इससे पहेल पिछले साल दिसंबर में राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत से राम मंदिर मामले पर फैसला 2019 चुनावों तक टालने की बात कहकर बीजेपी को कांग्रेस पर हमला करने और उसे एंटी हिंदु पार्टी करार देने का मौका दे दिया था। दरअसल बीजेपी के कुछ नेताओं ने पूरे मामले पर चुटली लेते हुए कहा कि जब मणिशंकर अय्यर और कपिल सिब्बल जैसे नेता कांग्रेस में मौजूद है तो विपक्ष को हमला करने की जरूरत ही नहीं है।

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