बिहार में जो महागठबंधन और उसका हाई वोल्टेज ड्रामा देख अब अच्छी अच्छी पार्टियां गठबंधन करने से पहले सौ बार सोचेंगी। शायद इसी कारण पिछले अनुभवों से सीख कर ही मायावती ने  पटना में 27 अगस्त को होने वाली आरजेडी की रैली में शामिल न होने का फैसला लिया है।  इतना ही नहीं सेक्यूलर फ्रंट में बीएसपी में शामिल होने को लेकर मायावती ने अपनी पार्टी का स्टैंड भी साफ कर दिया है ।

दरअसल विपक्ष द्वारा भाजपा के खिलाफ बनाए जा रहे सेक्यूलर फ्रंट में शामिल होने का न्योता मायावती की पार्टी बीएसपी को भी मिला था।  लेकिन कल अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती ने रैली में न शामिल होने की बात और पार्टी का स्टैंड रखते हुए कहा है कि, “बीएसपी अपने आप में एक सेक्यूलर पार्टी है और सीटों का बंटवारा हुए बिना उनकी पार्टी किसी दूसरी पार्टी के साथ मंच साझा नहीं करेगी।” इतना ही नहीं बीजेपी पर आरोप लगाते हुए मायावती ने कहा, बीजेपी एंड कंपनी बीएसपी के मिशन को कमजोर नहीं कर सकती है।

इसके अलावा मायावती ने कहा कि, “अगर रैली सफल हो भी गई तो बाद में इन सेकुलर पार्टियों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर घमासान होगा। इसी विश्वासघात का फायदा बीजेपी को मिल सकता है।”बीएसपी इसके खिलाफ नहीं है, लेकिन इसमें पूरी ईमानदारी की जरुरत है।” मायावती में बिहार का उदहारण देते हुए कहा कि “बिहार में हुआ पिछला गठबंधन यहीं दिखाता है। बसपा इससे सबक ले चुकी है और ठोस रणनीति के साथ फैसला लेंगे।”बीएसपी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टी के साथ कोई मंच तभी साझा करेगी, जब तय हो जाए की गठजोड़ वाली पार्टियों को कितनी सीटें मिलेंगी।

गौरतलब है कि मायावती का कहना कि गठबंधन का बनना बिगड़ना सीटों के बंटवारे पर ही तय होता है। उनका कहना है कि “यह इसलिए भी जरूरी है कि तब अंतिम समय में टिकटों के लिए मची मारामारी से बचा जा सकता है। बसपा कभी सम्मानजनक सीटों के साथ समझौता नहीं कर सकती।”

हालांकि इन सबके बावजूद देखने वाली बात तो यह होगी कि  लालू प्रसाद यादव के द्वारा आमंत्रित 27 अगस्त की पटना में हो रही देश की सभी सेकुलर पार्टियों को इस रैली में कौन कौन सी पार्टियां साथ आती हैं और कितने बिहार से सीख लेकर मायावती की राह पर चलती हैं।

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