मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने तीन तलाक पर बुधवार को जारी अध्यादेश को राजनीति से प्रेरित बताया है और कहा है कि अध्यादेश लाने की बजाय संसद की प्रवर समिति के पास भेज कर इससे संबंधित विधेयक पर गहन विचार-विमर्श के बाद उसे पारित कराया जाना चाहिये था। माकपा और भाकपा ने आज यहां जारी अलग-अलग विज्ञप्तियों में यह बात कही। माकपा पोलित ब्यूरो ने गुरुवार को यहां जारी एक बयान में कहा है कि इस अध्यादेश को मुस्लिम महिलाओं को राहत  देने के लिए नहीं लाया गया है बल्कि इससे राजनीतिक हित साधे गये हैं। यह संसद की अवमानना भी है क्योंकि इससे जुड़ा विधेयक राज्य सभा में लंबित है और इस पर पूरी चर्चा होनी बाकी है।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि इससे मुस्लिम महिलाओं को कोई फायदा भी नहीं होगा और इस विधेयक में कई तरह की खामियां भी हैं जिसे ठीक किया जाना बाकी है। उच्चतम न्यायालय ने जब तीन तलाक को गैर-कानूनी करार कर दिया है तब इस सिविल मामले को संज्ञेय अपराध बनाया गया और उसमें तीन साल के कैद का प्रावधान भी कर दिया गया। पार्टी ने मांग की है कि इस विधेयक को संसद में बहस के बाद पहले ही पारित किया जाना चाहिए।

भाकपा ने अपनी विज्ञप्ति में कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने जब तीन तलाक को अवैध घोषित किया तो पार्टी ने उसका स्वागत किया। संसद में जब इस पर विधेयक आया तो कई राजनीतिक दलों ने इस प्रवर समिति के पास भेजने की माँग की। लेकिन, संप्रग सरकार ने जल्दबाजी में अध्यादेश लाने का काम किया जिससे पता चलता है कि वह आम चुनाव से पहले सामाजिक ध्रुवीकरण और सांप्रदायीकरण का प्रयास कर रही है।

                                     -साभार, ईएनसी टाइम्स

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