Remission Policy – जानिए भारत में कैदियों को मिलने वाली माफी (परिहार योजना) के बारे में, जिसका बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों की रिहाई के बाद हो रहा है खासा विरोध

परिहार (Remission) का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 (मौलिक अधिकार) के तहत आने वाले दोषी के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखते हुए किया गया है.

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Remission Policy - जानिए भारत में कैदियों को मिलने वाली माफी (परिहार योजना) के बारे में, जिसका बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों की रिहाई के बाद हो रहा है खासा विरोध - APN News

हाल ही में, 2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करने और कम से कम सात लोगों की हत्या के अपराध में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई (Remission) (परिहार योजना के तहत) करने के गुजरात सरकार के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है.

Bilkis Bano
Bilkis Bano during a presser

उच्चतम न्यायालय में दायर की गई एक जनहित याचिका में कहा गया है कि दोषियों को माफी देने के गुजरात सरकार के इस विवादास्पद आदेश की न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए. याचिका में यह भी कहा गया है कि सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाने के कई ठोस कानूनी आधार मौजूद हैं.

SC
Supreme Court of India

गुजरात सरकार द्वारा दी गई माफी दोषियों में से एक की याचिका पर उच्चतम न्यायालय की दो-न्यायाधीशों वाली एक पीठ द्वारा दिए गए निर्देश पर आधारित थी. पीठ ने कहा था कि गुजरात सरकार द्वारा जुलाई 1992 में बनाई गई विशेष परिहार नीति के तहत इस माफी पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि यही नीति 2008 में उनकी दोषसिद्धि के समय पर लागू थी.

परिहार (माफी) के बारे में

परिहार (Remission) का अर्थ किसी एक तय समय पर किसी दंड या सजा की पूर्ण रूप से समाप्ति है. परिहार में दंड की प्रकृति अछूती रहती है, जबकि अवधि कम कर दी जाती है, यानी शेष दंड या सजा को पूरा करने की जरूरत नहीं होती है.

MHA

परिहार के बाद कैदी को एक तय तारीख पर रिहा किया जाता है और वो कानून की नजर में वह एक स्वतंत्र व्यक्ति होगा.

हालांकि परिहार छूट की किसी भी शर्त के उल्लंघन के मामले में इसे रद्द कर दिया जाएगा और अपराधी को अपनी सजा को पूरा करना पड़ सकता है.

परिहार प्रणाली (Remission System)

जेल अधिनियम, 1894 के तहत परिहार प्रणाली को परिभाषित किया गया है, जो कुछ समय के लिये लागू किये गये नियमों का एक समूह है. जेल अधिनियम ही जेल में कैदियों को उनके व्यवहार का आकलन करने के बाद उनकी सजा को कम करने के लिये विनियमित (Regulate) करता है.

1989 के केहर सिंह बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि सरकार किसी भी कैदी को सजा से छूट हेतु विचार किये जाने से इनकार नहीं कर सकता है.

न्यायालय के अनुसार कुछ मामलो में परिहार न देना सुधार के सिद्धांतों के खिलाफ होगा.

उच्चतम न्यायालय ने 2007 के हरियाणा राज्य बनाम महेंद्र सिंह मामले में कहा था कि बेशक किसी भी दोषी को परिहार देना उसका मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन राज्य को अपनी परिहार संबंधी कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करते समय प्रत्येक व्यक्तिगत मामले को ध्यान में रखते हुए एवं प्रासंगिक कारकों को देखते हुए विचार करना चाहिये. न्यायालय का विचार था कि छूट के लिये विचार किये जाने के अधिकार को कानूनी माना जाना चाहिये.

परिहार का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 (मौलिक अधिकार) के तहत आने वाले दोषी के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखते हुए किया गया है.

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)

भारतीय संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को क्षमा शक्ति प्रदान की गई है-

President
Rashtrapati Bhavan

केंद्र में

संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति की सजा को क्षमा, लघुकरण, विराम या प्रविलंबन कर सकता है या निलंबित या कम कर सकता है. यह सभी मामलों में किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति के लिए किया जा सकता है.

राष्ट्रपति कोर्ट-मार्शल (सैन्य न्यायालय), केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्ति से संबंधित किसी भी कानून के तहत अपराध के संदर्भ में और मौत की सजा के सभी मामलों में सजा को कम कर सकता है या फिर खत्म कर सकता है.

Raj Bhavan Gujarat
Rajbhavan

राज्य में

राज्यपाल (संबधित राज्य में) संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत सजा को क्षमा, प्रविलंबन, विराम या परिहार दे सकता है, या सजा को निलंबित, हटा या कम कर सकता है. राज्यपाल राज्य की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत आने वाले मामले में किसी भी कानून के तहत दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति के लिये किया जा सकता है.

अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से तुलनात्मक रूप से अधिक वृहद है.

परिहार की सांविधिक शक्ति (Statutory Power of Remission)

भारत द्वारा 1974 में लागू की गई दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) 1973, भी जेल की सजा में छूट का प्रावधान करती है, जिसके तहत पूरी सजा या उसका एक हिस्सा रद्द किया जा सकता है.

दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) 1973, की धारा 432 के तहत ‘उपयुक्त सरकार’ (राज्य सरकार) किसी सजा को पूरी तरह से या आंशिक रूप से या शर्तों के साथ बगैर शर्तों के निलंबित या माफ कर सकती है.

दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) 1973, की धारा 433 के तहत किसी भी सजा को उपयुक्त सरकार (केंद्र या राज्य सरकार) द्वारा कम किया जा सकता है.

कैदियों के लिए विशेष परिहार योजना (2022) के दिशा निर्देश

जून 2022 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा भारत की आजादी के 75वें वर्ष के अवसर पर देशभर की जेलों में बंद कैदियों को विशेष छूट देने के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश जारी किये थे.

विशेष परिहार

केंद्र सरकार द्वारा 10 जून 2022 में आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में कैदियों की एक निश्चित श्रेणी को विशेष छूट देने को लेकर दिशा निर्देश जारी किए गए थे. आदेश के मुताबिक इन कैदियों को तीन चरणों (14 अगस्त 2022, 25 जनवरी 2023 और 14 अगस्त 2023) में रिहा किया जाएगा.

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कैदियों के लिए विशेष परिहार योजना (2022) के दिशा निर्देश

पात्रता शर्तें

जारी किये गये आदेश के मुताबिक कुल आठ तरह के कैदियों को विशेष छूट देने को कहा गया था.

50 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिलाएं जो अपनी सजा का आधा पूरा कर चुकी हों.

50 वर्ष या उससे अधिक उम्र के ट्रांसजेंडर कैदी जिन्होंने सजा का आधा पूरा हो चुका है.

60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के पुरुष कैदी, जिन्होंने सजा का आधा पूरा हो चुका है.

70 फीसदी या अधिक की विकलांगता के साथ शारीरिक रूप से अक्षम कैदी जिन्होंने अपनी कुल सजा की अवधि का 50 फीसदी पूरा कर लिया है.

गंभीर रूप से बीमार सजायाफ्ता कैदी जिन्होंने अपनी कुल सजा का दो-तिहाई (66 फीसदी) पूरा कर लिया है.

ऐसे गरीब या निर्धन कैदी जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है लेकिन उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान करने में अक्षमता के कारण वे अभी भी जेल में हैं.

ऐसे व्यक्ति जिन्होंने कम उम्र (18-21 वर्ष की आयु के बीच में) में अपराध किया हो और उनके खिलाफ कोई अन्य आपराधिक संलिप्तता या मामला दर्ज नहीं है एवं अपनी सजा की अवधि का आधा (50 फीसदी) पूरा कर लिया है, वे भी पात्र होंगे.

इन कैदियों को अर्जित सामान्य छूट की अवधि की गणना किये बिना अपनी कुल सजा अवधि का 50 फीसदी पूरा करना होगा.

योजना के दायरे से बाहर रखे गए कैदी

जारी किये गये दिशानिर्देशों में कुछ लोगों (9 श्रेणियों) को विशेष परिहार के दायरे से बाहर भी रखा गया है-

मौत की सजा के साथ दोषी ठहराए गए व्यक्ति या जहां मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया है या किसी ऐसे अपराध के लिये दोषी ठहराया गया है, जिसके लिये मौत की सजा को सजा के रूप में निर्दिष्ट किया गया है.

आजीवन कारावास की सजा के साथ दोषी ठहराए गए व्यक्ति.

आतंकवादी गतिविधियों में शामिल अपराधी या दोषी व्यक्ति- आतंकवादी और विघटनकारी कार्यकलाप (निवारण) अधिनियम, 1985; आतंकवादी रोकथाम अधिनियम, 2002;  गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967; विस्फोटक अधिनियम, 1908; राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1982; आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 और अपहरण विरोधी अधिनियम, 2016.

दहेज हत्या, जाली नोट से संबधित धाराओं में सजायाफ्ता, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध संबंधी (बाल यौन अपराध संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत); अनैतिक तस्करी अधिनियम, 1956; स्वापक ओषधि और मन:पर्भावी पदार्थ अधिनियम, 1985; भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988,  विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999; धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002, सामूहिक संहार के हथियार और उनकी वितरण प्रणाली संशोधन विधेयक-2005, अघोषित विदेशी आय एवं संपत्ति कर अधिरोपण अधिनियम, 2015 आदि के अपराध के लिये दोषी व्यक्तियों के मामले में राज्य के खिलाफ (आईपीसी का अध्याय-VI) अपराध और कोई अन्य कानून जिसे राज्य सरकारें या केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन बाहर करना उचित समझते हैं, विशेष छूट के लिये पात्र नहीं होंगे.

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योजना के दायर से बाहर रखे गये कैदी

अनुच्छेद 72 और शब्दावली

भारत के संविधान का अनुच्छेद 72 भारत के राष्ट्रपति को कतिपय मामलों (Certain Matters) सहित उन मामलों में जहां मृत्यु का दंडादेश दिया गया है, को क्षमा प्रविलंबन, उसका विराम या परिहार करने अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति प्रदान करता है.

क्षमा (Pardon)

इस में दंड और बंदीकरण दोनों को हटाकर दोषी को दंड, दंडादेशों एवं निर्हर्ताओं से पूर्णतः मुक्त कर दिया जाता है.

परिहार (Remission)

सजा की अवधि में बदलाव कर दिया जाता है. जैसे- 5 साल की सजा को 2 या फिर 3 साल में बदल देना.

विराम (Respite)

विराम के तहत सजा को विशेष परिस्थितियों में कम कर दिया जाता है. जैसे- शारीरिक अक्षमता या महिलाओं की गर्भावस्था आदि.

प्रविलंबन (Reprieve)

प्रविलंबनके तहत दिये गया दंड को कुछ समय के लिये टाल दिया जाता है. मुख्यत: ये ऐसे मामलों में किया जाता है जब अपराधी की याचिका लंबित हो. जैसे- फांसी को कुछ समय के लिये टालना.

लघुकरण (Commutation)

लघुकरण में सजा की प्रकृति को बदल दिया जाता है. जैसे- मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदल देना.

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