दुनिया में इंसान मृत्यु के बाद शरीर त्याग कर भले ही चला जाता है किंतु उसकी छवि हमेशा लोगों के मन में बसी रहती है और वो दुनिया में अपने वजूद का एहसास भी दिलाती है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला रामेश्वरम् में जहां गुरूवार को पीएम मोदी ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की दूसरी पुण्यतिथि पर कलाम मेमोरियल का उद्घाटन किया।
बात ये हुई कि उनके गृह नगर पीकारुंबू में हाथ में वीणा लिए हुए उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई है। उनके बगल में पवित्र ग्रंथ गीता रखा गया था। यह देख कई पॉलिटिकल पार्टियां और डॉ कलाम के परिवार समेत कई लोग काफी क्रोधित हुए और उन्होंने इसे डॉ. कलाम को एक विशेष धर्म से जोड़ने की कोशिश बताया। हालांकि अब मूर्ति के सामने गीता सहित अन्य धर्मों के ग्रंथों को भी रख दिया गया है।
डीएमके,एमडीएमके,एआईडीएमके समेत कई राजनीतिक पार्टियों ने मेमोरियल में वीणा बजाते हुए कलाम की मूर्ति और उसके पास भगवद्गीता किताब रखवाए जाने पर विरोध दर्ज कराया था। राजनीतिक पार्टियों का मानना था कि कलाम की प्रतिमा के पास गीता की मौजूदगी सांप्रदायिकता थोपने की एक कोशिश है। वहीं डॉ.कलाम के परिवार जनों का कहना था कि कलाम को किसी धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, उन्होंने सभी धर्मों की गहराई से अध्ययन किया था। उनकी छवि किसी एक मजहब से जोड़ना गलत है कि वो पूरे देश के लिए आदर्श थे। ऐसे में उनकी प्रतिमा को लेकर राजनीति करना सही नहीं है।
कलाम मेमोरियल को बनाने में 15 करोड़ रुपये की लागत आई है और इसके लिये कलाम के गांव पीकारंबू में तमिलनाडु सरकार ने जमीन आवंटित की थी। बताया जाता है कि डॉ कलाम का वीणा से खास लगाव था इसलिए प्रतिमा में वीणा को भी दिखाया गया है। डॉ.कलाम बच्चों से बड़ा प्यार करते थे। उन्होंने कभी भी धर्म, जाति विषयों पर ध्यान नहीं दिया, उनकी मंशा भारत को सुरक्षा दृष्टि को मजबूत बनाना था। उन्होंने जो भी किया हमेशा पूरे देश के लिए किया। यह उनकी छवि का नतीजा ही है कि लोग गीता रखने पर आपत्ति जताने लगे अन्यथा किसी और इंसान पर लोग ध्यान भी नहीं देते।