एक बार फिर इसरो ने कमाल कर दिखाया। वैसे तो इसरो काफी कमाल पहले कर चुका है लेकिन अभी हाल ही में जीसैट-6 ए सैटेलाइट की नाकामयाबी ने उसकी कामयाबी में रोड़ा अटकाने का काम किया था। लेकिन एक बार फिर इसरो उठा औऱ आसमान को छूने में कामयाब रहा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज (गुरुवार) नए नैविगेशन सैटेलाइट को लॉन्च किया। इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस-1) को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सुबह चार बजे अंतरिक्ष में भेजा गया। यह लांचिग पीएसएलवी-सी41 रॉकेट के जरिये की गई।  IRNSS-1I स्वदेशी तकनीक से निर्मित नेविगेशन सैटेलाइट है। IRNSS-1I सैटेलाइट का वजन 1425 किलोग्राम है। इस सैटेलाइट की लंबाई 1.58 मीटर, ऊंचाई 1.5 मीटर और चौड़ाई 1.5 मीटर है। इसे 1420 करोड़ रुपए में तैयार किया गया है।

IRNSS-1L को बेंगलुरु की एयरोस्पेस कंपनी अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज की अगुआई वाली मिड और स्मॉल कंपनियों के ग्रुप ने तैयार किया है। यह नया एटॉमिक क्लॉक लगा एक बैकअप नेविगेशन सैटेलाइट है, जिसे इसरो की निगरानी में बनाया गया है। यह इसरो की तरफ से खासतौर पर प्राइवेट कंपनियों के लिए बनाई गई फैसिलिटी में तैयार पहला सैटेलाइट है। बता दें कि आईआरएनएसएस-1 उस सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1एच की जगह लेगा, जिसकी लांचिग पिछले साल 31 अगस्त को असफल हो गई थी।उपग्रह पुंज इस तरह का आठवां उपग्रह है। पीएसएलवी-सी41/आईआरएनएसएस-1 आई मिशन को आज सुबह चार बजकर चार मिनट पर प्रक्षेपित किया। गौरतलब है कि पीएसएलवी-सी41/आईआरएनएसएस-1 आई स्वदेश ई-तकनीक से निर्मित नौवहन उपग्रह है।

IRNSS-1I से नेविगेशन के क्षेत्र में मदद मिलेगी। इसमें समुद्री नेविगेशन के साथ ही मैप और सैन्य क्षेत्र को भी मदद मिलेगी। ये सैटेलाइट इसरो की नाविक प्रणाली का हिस्सा होगी। इंडियन सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम ‘नाविक’ में 9 सैटेलाइट हैं। बता दें कि इसरो के लिए आज लॉन्चिंग दो वजहों से बेहद अहम है। पहली वजह ये है कि नेविगेशन सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने की उसकी पिछली कोशिश बेनतीजा रही थी और दूसरी वजह चंद रोज़ पहले अंतरिक्ष में भेजी गई सैटेलाइट G-SAT-6A से सम्पर्क टूटने की घटना है।

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