रक्षाबंधन यानि भाई-बहन के प्रेम और वात्सल्य का पवित्र त्योहार। लेकिन इन सबसे अलग इस दिन पत्थरों का युद्ध वह भी हर साल। आपको भले ये अजीब लगे लेकिन भाई बहन के आपसी प्रेम, एकता और संस्कृति के इस त्योहार के दिन ये युद्ध जैसा दृश्य। ये सच है उत्तराखंड के एक गांव में आज भी होता है हर साल पत्थरों से युद्ध वो भी जमकर।

हालांकि ये युद्ध नहीं बल्कि एक परंपरा है, जिसे चांद पर पहुंच चुके देश और अपनी अंगुलियों से गूगल को खोलती युवा पीढ़ी सदियों से निभा रही है। खुले मैदान में सैकड़ों लोगों की भीड़ होती है, हाथों में पत्थर होते हैं। मैदान के बीच सैकड़ों लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बारिश करते हैं। चंपावत के इस गांव में गूगल युग में भी पाषाण काल की याद आ जाती है। उत्तराखंड के चंपावत के बग्वाल मेला के सुप्रसिद्ध मां बाराही धाम देवीधूरा में प्रतिवर्ष यह युद्ध आयोजित होता है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में लोग आते हैं। हमेशा की तरह इस साल भी उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध देवीधूरा बगवाल मेला बारिश और कोहरे की आगोश के बीच संपन्न हो गया। इस बार भी फल फूलों के साथ पत्थरों की मार आठ मिनट चली जिसमें 110 बग्वाली वीर और दर्शक लहूलुहान हो गए। जिनका इलाज किया गया।

इस रोमांचक, अदभुत और कल्पना से परे नजारे को हजारों से ज्यादा दर्शक आंखें फाड़कर लगाकर देखते रहे। पत्तरबाजी की शुरूआत बाराही धाम में विशेष पूजा अर्चना के बाद दोपहर एक बजे से सात थोकों और चार खामों के बग्वाली वीरों के जत्थे आने के बाद हुई। खाम के लोगों ने अलग-अलग रंग की पगड़ियों के साथ मां बाराही के जयघोष के बीच मंदिर और बग्वाल मैदान खोलीखांड द्रुबाचौड की परिक्रमा की। बांस के फर्रों और डंडों के बीच बग्वाली वीर उछल-उछल कर मैदान  में रोमांच के साथ जोश और जज्बा पैदा करते रहे।

पत्थरबाजी के इस खेल में मंदिर छोर पर लमगडिया और बालिक, बाजार छोर में गड़वाल और चमियाल खाम के बग्वाली वीर आमने-सामने आ गए। जैसे ही पुजारी ने शंख और घंटे ध्वनि की उतावले बग्वाली वीरों ने फल फूलों के साथ ही पत्थर चल पड़े। जब पुजारी को आभास हुआ कि अब इसे बंद करना चाहिये वो चंवर ढुलाते हुए मां बाराही के छत्र के साथ मैदान में पुहंचे और शंखध्वनि के साथ बग्वाल बंद करने का ऐलान किया।

इस खेल में रणबांकुरों के साथ कई दर्शक भी लहूलुहान हो गए। कुछ एक का प्राथमिक उपचार हुआ। वहीं कुछ का बिच्छू घास लगाकर भी परंपरागत उपचार हुआ। माना जाता है कि, नर बलि की परम्परा के अवशेष के रुप में ही बग्वाल मेला का आयोजन होता है। सदियों से चल रहे इस अनोखे युद्द की एक अलग खासियत और रोमांच है। इस बार मेले के मुख्य अतिथि केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा और उत्तराखंड के मंत्री धन सिह रावत रहे। विधायक पूरन फर्त्याल, राम सिंह कैडा सहित कई हजारों लोग इस परंपरागत युद्ध के साक्षी बने।

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