आज भारत समेत पूरी दुनिया में होली का खुमार सिर चढ़ कर बोल रहा है। चारो तरफ रंगारंग कार्यक्रम ही नहीं चल रहे बल्कि रंगारंग लोग भी दिख रहे हैं। रंग के इस त्यौहार में अबीर-गुलाल के साथ लोग ठंडे-ठंडे पानी के बौछार का आनंद उठा रहे हैं। शायद भारत का मौसम भी होली के रंग में रंग जाता है इसीलिए न ठंडी महसूस होती है और न ज्यादा गर्मी और पूरा भारतवर्ष रंगारंगीन हो जाता है। भाईचारे के इस त्यौहार में लोग डांस भी करते हैं और मार भी करते हैं पर रंग लगाए बिना छोड़ते नहीं है। इसे प्यार का त्यौहार भी कहते हैं और जबरदस्ती का भी। प्यार से पोतवाओगे तो मजा मिलेगा, नहीं पोतवाओगे तो सजा भी मिलेगा। इस त्यौहार में न कोई बड़ा मिलेगा, न कोई छोटा मिलेगा, न कोई अमीर मिलेगा, न कोई गरीब मिलेगा, न कोई जाति मिलेगी, न कोई धर्म मिलेगा। किसी को भी देखोगे तो हर जगह प्यार का रंग ही रंग मिलेगा।

आज न छोड़ेंगे बस हमजोली खेलेंगे हम होली, खेलेंगे हम होली चाहे भीगे तेरी चुनरिया चाहे भीगे रे चोली खेलेंगे हम होली, होली है!…। यही गाना देश के किसी गली-नुक्कड़ में भी बजता दिखाई दे जाएगा और किसी बड़े बंगले के बाहर भी। आज हम आपको विविधताओं वाले इस देश की विविध होली के बारे में बताएंगे कि आखिर कैसे देश की अलग-अलग संस्कृति, परंपरा और इतिहास एक ही रंग में रंग जाती है।

  1. उत्तर प्रदेश में ब्रज की बरसाने की ‘लट्ठमार होली’ अपने आप में अनोखी और विश्व प्रसिद्ध है, जिसका आनंद लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां होली खेलने के लिए रंगों के स्थान पर लाठियों व लोहे तथा चमड़े की ढालों का प्रयोग किया जाता है। महिलाएं लाठियों से पुरुषों को पीटने का प्रयास करती हैं जबकि पुरुष ढालों की आड़ में स्वयं को लाठियों के प्रहारों से बचाते हैं। टॉयलेट-एक प्रेम कथा फिल्म में भी इस तरह का एक सीन था। ब्रज मंडल में नंदगांव, बरसाना, मथुरा, गोकुल, लोहबन तथा बलदेव की लट्ठमार होली विशेष रूप से प्रसिद्ध व दर्शनीय है।
  2. पश्चिम बंगाल के पुरूलिया में भी होली को बहुत ही अलग ढंग से मनाया जाता है। होली के दिन यहां पारंपरिक नृत्य और संगीत का मजा लिया जा सकता है। होली को अगर आप शाही अंदाज में मनाने के मूड में हैं तो उदयपुर आपकी इस इच्छा को पूरा कर सकता है। यहां होली काफी भव्यता के साथ मनाई जाती है। राजस्थान में विदेशी पर्यटक भी स्थानीय लोगों के साथ होली मनाते हैं। वे एक दूसरे के चेहरों को रंगों से पोतते हैं और इस अनूठे पर्व का आनंद उठाते हैं।मथुरा और वृंदावन की तरह ही उत्तराखंड के कुमाऊं में भी होली का त्योहार बेहद खास ढंग से मनाया जाता है। उत्तराखंड की होली में ब्रज और उर्दू का प्रभाव साफ झलकता है। मुगलों, राजे रजवाड़ों के मेल-मिलाप से ये परंपरा बनी। कुमाऊं की होली गायकी को लोकप्रिय बनाने में जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ का अहम योगदान रहा। यहां प्रचलित होली के तीन भेद बताए गए हैं।
  3. पश्चिम बंगाल में होली का आयोजन तीन दिन तक चलता है, जिसे ‘डोलीजागा’ नाम से जाना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों के आस-पास कागज, कपड़े व बांस से मनुष्य की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं और छोटी-छोटी पर्णकुटियों का भी निर्माण किया जाता है। शाम के समय मनुष्य की प्रतिमाओं के समक्ष वैदिक रीति से यज्ञ किए जाते हैं और यज्ञ कुंड में मनुष्य की प्रतिमाएं जला दी जाती हैं।
  4. हिमाचल प्रदेश में होलिका दहन के पश्चात् बची हुई राख को ‘जादू की शक्ति’ माना जाता है और यह सोचकर इसे खेत-खलिहानों में डाला जाता है कि इससे यहां किसी प्रकार की विपत्ति नहीं आएगी और फसल अच्छी होगी। इसी तरह गुजरात में होली का पर्व ‘हुलासनी’ के नाम से मनाया जाता है। होलिका का पुतला बनाकर उसका जुलूस निकाला जाता है और होलिका के पुतले को केन्द्रित कर लोग तरह-तरह के हंसी-मजाक भी करते हैं। उसके बाद पुतले को जला दिया जाता है और होलिका दहन के बाद बची हुई राख से कुंवारी लड़कियां ‘अम्बा देवी’ की प्रतिमाएं बनाकर गुलाब तथा अन्य रंग-बिरंगे फूलों से उनकी पूजा-अर्चना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
  5. गोवा के शिमगो उत्सव में लोग वसंत का स्वागत करने के लिए रंगों से खेलते हैं। होली के दिन पणजी में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं और जुलूस निकाला जाता है। वहीं महाराष्ट्र में होली का त्यौहार ‘शिमगा’ नाम से मनाया जाता है। यहां इस दिन घरों में झाड़ू का पूजन करना शुभ माना गया है। पूजन के पश्चात् झाड़ू को जला दिया जाता है। प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में होली खेलते समय पुरुष ही रंगों का इस्तेमाल करते हैं। दक्षिण भारत के राज्यों में मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी दिन कामदेव को अपने गुस्से से भस्म कर दिया था, इसलिए यहां होली पर्व कामदेव की स्मृति में ‘कामदहन पर्व’ के रूप में ही मनाया जाता है।

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