प्रत्येक दो महीने में होने वाली मौद्रिक समीक्षा में वित्त मंत्रालय के साथ की जाने वाली बैठक को इस बार छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने सर्वसम्मति से ठुकरा दिया। एमपीसी में रिजर्व बैंक गवर्नर, डिप्टी गवर्नर और कार्यकारी निदेशक सहित तीन सदस्य रिजर्व बैंक से होते हैं जबकि तीन सदस्य बाहर से होते हैं। रिजर्व बैंक की ओर से मौद्रिक समीक्षा के दौरान कोर्इ भी फैसला समिति में सरकार के सदस्यों की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है। बावजूद इसके जब बुधवार को केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में कटौती नहीं की, तो सरकार की भौहें तन गयी।
दरअसल सरकार का मानना है कि वर्तमान आर्थिक स्थिति में रिजर्व बैंक के लिए मौद्रिक नीति में नरमी लाने की बड़ी गुंजाइश थी और बैंक को रेपो रेट में कटौती करनी चाहिए। इस मसले पर सरकार आरबीआई के साथ बैठक करना चाहती थी किंतु किसी भी परिणाम तक पहुंचने के लिए सरकार के सदस्यों की सहमति आवश्यक होती और इससे आरबीआई के स्वायत्ता का हनन होता इसलिए आरबीआई ने सभी सदस्यों की सर्वसम्मति से बैठक में हिस्सा ही नहीं लिया।
हालांकि, रिजर्व बैंक ने नीतिगत ब्याज दर में कमी न करने के बावजूद कुछ श्रेणी के आवास ऋणों के लिए जोखिम के प्रावधान में कमी की है, जिससे 30 लाख रुपये से 75 लाख रुपये तक के आवास ऋण सस्ते होने की उम्मीद है। देखा जाए तो ब्याज दर घटाने की मांग को लेकर अक्सर आरबीआई और सरकार के बीच मतभेद उभरता रहा है। रेपो रेट तय करने और मौद्रिक नीति उपाय तय करने के लिए पिछले साल सितंबर में एमपीसी बनायी गयी थी।