क्यों गोडसे का अपने गुरु सावरकर से हो गया था मोहभंग?

सावरकर और गोडसे को हिंदुत्ववादी अलग-अलग नजरियों से देखते हैं।

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godse and savarkar
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27 सितंबर 1925 को केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। ऐसा माना जाता है कि हेडगेवार ने विनायक दामोदर सावरकर के हिंदुत्व के विचारों से प्रभावित होकर संघ की स्थापना की थी। हालांकि संघ अक्सर विवादों में रहा है। संघ पर न सिर्फ ब्रिटिश भारत में पाबंदी लगी थी बल्कि आजाद भारत में कई मौकों पर इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया है। मसलन 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद RSS पर प्रतिबंध लगा था। ये इसलिए क्योंकि संघ के स्वयंसेवक रह चुके नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या को अंजाम दिया था।

इस लेख में हम बात करेंगे सावरकर और गोडसे की। साथ ही बताएंगे कि कैसे एक समय में सावरकर को अपनी प्रेरणा मानने वाले गोडसे का अपने गुरु से मोहभंग हो गया था। नाथूराम गोडसे विनायक दामोदर सावरकर के विचारों से काभी प्रभावित था। उसने उनके हिंदुत्व का काफी अध्य्यन किया था। इससे प्रभावित होकर ही उसने स्वयं को हिंदू धर्म और हिंदू समाज के लिए समर्पित करने का फैसला कर लिया था। RSS के लिए काफी समय तक काम करने के बाद गोडसे हिंदू महासभा के कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने लगा था। ये वो समय था जब महासभा का नेतृत्व सावरकर करने लगे थे।

गोडसे ने गांधी की हत्या के बाद अपने बयान में कहा था कि जब से महासभा को सावरकर का नेतृत्व मिला तब से संगठन के कामकाज में बड़ा बदलाव आया, कार्यकर्ताओं में जोश आया। गोडसे ने बताया था कि उसने जब हिंदुत्व के प्रचार के लिए अखबार निकालने की सोची तो सावरकर ने उसे 15 हजार रुपये दिये थे। इसके बाद गोडसे अक्सर सावरकर के कार्यालय आने-जाने लगा था।

जब सावरकर ने गोडसे को गांधी का विरोध करने के लिए लगाई फटकार…

बाद में सावरकर की तबीयत बिगड़ने लगी और वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष पद से हट गए। उनकी जगह श्यामा प्रसाद मुखर्जी महासभा के अध्यक्ष बने। गोडसे ने अपने एक बयान में कहा था कि मुखर्जी के अध्यक्ष बन जाने से महासभा का काम ठंडा पड़ गया है। गोडसे के मुताबिक 1946 में नोआखाली में हिंदुओं पर हुए अत्याचार के बाद उसका खून खौल उठा था। उस समय वहां सुहरावर्दी की सरकार थी और गांधी सुहरावर्दी के समर्थन में उतर आए थे। आलम ये कि अपनी प्रार्थना सभाओं में गांधी कुरान की आयतें पढ़वा रहे थे, हालांकि किसी मस्जिद में गीता पढ़वाने का कार्य गांधी ने नहीं किया। गोडसे ने गांधी के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की सोची और ऐसा किया। बाद में सावरकर ने गांधी का विरोध करने के लिए गोडसे और उसके साथियों को फटकार लगायी थी। सावरकर के मुताबिक गांधी प्रार्थना सभा में अपनी बातें रखने के लिए आजाद थे और महासभा को इसमें दखल नहीं देना चाहिए।

आजादी के बाद नेहरू सरकार का समर्थन और मुखर्जी को मंत्री बनने के लिए कहना….

दूसरा मौका मोहभंग का वह जब सावरकर ने देश की आजादी के बाद कहा कि आजाद देश की सरकार , कांग्रेस की सरकार नहीं बल्कि भारत की सरकार है और हमें उसका समर्थन करना चाहिए, क्योंकि सरकार देश निर्माण के लिए कार्य करेगी। सावरकर ने कहा था कि देश नया-नया आजाद हुआ है, अगर महासभा विरोध करती है तो कहीं देश में गृह युद्ध जैसी स्थिति न पैदा हो जाए। ये बात गोडसे को रास नहीं आई थी।

इसके बाद अगस्त 1947 में गोडसे और उसके साथियों ने कोशिश की कि महासभा उनके किसी प्रस्ताव को स्वीकार करे लेकिन सावरकर की अध्यक्षता में हुए सम्मेलन में महासभा ने गोडसे के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। गोडसे के मुताबिक सावरकर ने तो यहां तक कह दिया कि 15 अगस्त को सब अपने घर पर तिरंगा लगाएंगे। ये बात गोडसे को नागवार गुजरी थी। यहां तक कि सावरकर ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की उस बात का समर्थन किया कि मुखर्जी को नयी सरकार में मंत्री बनना चाहिए। गोडसे का मानना था कि गांधी के रहते महासभा और कांग्रेस साथ नहीं आ सकते।

इसके बाद गोडसे का सावरकर से मोहभंग हो गया और उसने तय किया वह खुद की योजना बनाएगा और इसकी जानकारी सावरकर या किसी दूसरे नेता को नहीं देगा। जिसकी परिणति ये हुई की 30 जनवरी 1948 को गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी।

( Source- Why I Assassinated Gandhi By Nathuram Godse; Farsight Publishers and Distributors )

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