झारखंड के 50 प्रतिशत लोगों को जरुरत के अनुसार सालोभर भोजन उपलब्ध नहीं होता है ।इस बात का खुलासा ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में हुआ है। इस इंडेक्स के मुताबिक देश में भूख और कुपोषण के मामले में बेशक थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन स्थिति अभी भी गंभीर है। झारखंड में खाद्य असुरक्षा की स्थिति अन्य पिछड़ी जातियों में 62 प्रतिशत, आदिम जनजातियों में 53, अनुसूचित जनजाति में 38 और सामान्य वर्ग में 26 प्रतिशत है।

आदिम जनजातियों में भोजन संकट के कारण 5.5 प्रतिशत परिवार एक ही शाम खाना खा पाते हैं , जबकि 59 प्रतिशत परिवारों को तीन टाइम भोजन मिल पाता है। 26 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं, जो किसी तरह दो टाइम का भोजन जुटा पाते हैं। सूबे में भोजन की समस्या सबसे ज्यादा मानसून में होती है, जब मजदूरी नहीं मिलती ।

दरअसल, भारत दुनिया के उन 45 देशों में से एक है, जहां भूख और कुपोषण की स्थिति गंभीर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में बच्चों के सुखापन की दर 21 प्रतिशत है, जबकि कुल जनसंख्या के 14.8 प्रतिशत लोग अल्पपोषण के शिकार है. वहीं नाटापन में गिरावट आई है, लेकिन बाल मृत्युदर 4.3 प्रतिशत है। भारत 2018 के सर्वे में शामिल विश्व के 119 देशों में 103 वें स्थान पर रहा।

झारखंड के 50.3 प्रतिशत लोगों को जरुरत के अनुसार सालोभर भोजन उपलब्ध नहीं होता है। खाद्य असुरक्षा की स्थिति अन्य पिछड़ी जातियों में 62 प्रतिशत, आदिम जनजातियों में 53, अनुसूचित जनजाति में 38 और सामान्य वर्ग में 26 प्रतिशत है। आदिम जनजातियों में भोजन संकट के कारण 5.5 प्रतिशत परिवार एक ही शाम खाना खा पाते हैं. जबकि 59.3 प्रतिशत परिवारों को तीन टाइम भोजन मिल पाता है। 26 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं, जो किसी तरह दो टाइम का भोजन जुटा पाते हैं। सूबे में भोजन की समस्या सबसे ज्यादा मानसून में होती है, जब मजदूरी नहीं मिलती। अंतराष्ट्रीय स्तर पर किये गये इस सर्वे पर झारखंड में भूख और कुपोषण की समस्या पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता जहां सरकार को इसे खत्म करने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं।

ब्यूर रिपोर्ट, एपीएन

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