देश की राजधानी दिल्ली की सांसो पर कोरोना का कब्जा है। हर दिन यहां की जनता ऑक्सीजन के इंतजार में दम तोड़ रही है। राजधानी में पहले से कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था की कमर कोरोना ने चूर-चूर कर दी है। लाशों का ढेर लगा हुआ है। अंतिम संस्कार के लिए नए श्मशान घाट बनाने पड़ रहे हैं। इन सब मुश्किलों से लड़ने के लिए सरकार नाइट कर्फ्यू और वीकेंड लॉकडाउन का सहारा ले रही है लेकिन हालात जस का तस है। कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण दिल्ली के दहलीज पर पिछले 150 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन में कोविड का विस्फोट होने का डर अब आसपास की जनता को सताने लगा है।

गाजीपुर बॉर्डर, सिंघू बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर किसान कृषी कानून को रद्द कराने के लिए धरने पर बैठे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि, कोरोना क्या कोरोना का बाप भी आगया तो भी हम यहां से नहीं जाएंगे। किसानों के इस अड़ियल रवैये को देखते हुए लोगों को डर है कि, कहीं ये आंदोलन कोरोना का किला न बन जाए। यहां पर हजारों की तादाद में लोग शामिल हैं। कोई भी किसान मास्क नहीं लगाता है। सोशल डिस्टेंसिंग मतलब कुछ नहीं। सैनिटाइजर वो क्या होता है।

सिंघु बॉर्डर पर दिल्ली की सीमा में हरियाणा और दिल्ली सरकार की ओर से कोई भी कोरोना जांच केंद्र नहीं खोला गया है। इसके साथ-साथ नरेला रोड पर भी कोई जांच नहीं की जा रही। यहां से हर रोज लोग दिल्ली-हरियाणा में आवागमन करते हैं। टेस्ट न होने का फायदा उठाकर प्रदर्शनकारी दिल्ली के लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।

सबसे बड़ी मुश्किल तो ये है कि, आंदोलनकारी किसान कोरोना चेकअप भी नहीं करा रहे हैं। किसान यहां पर आते हैं और कुछ दिन रहने क बाद गांव चले जाते हैं इससे इस बीमारी का गांव में फैलने की आशंका जताई जा रही है। बता दें कि, कोरोना के समय सभी को घर में रहने की सलाह दी गई है लकिन किसानों को लेकर मोदी सरकार ने कोई घोषणा नहीं की है। न ही तो सरकार की तरफ से किसानों का कोरोना टेस्ट हो रहा है। किसान कानून को लेकर अपनी जिद पर अड़े हैं। इनका कहना है कि, जब तक तीनों कानून रद्द नहीं होते तब तक वे यहां से कहीं नहीं जाएंगे।

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