देश को अपना एक और साहित्य का महान प्रेमी मिल गया है। मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती को  साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया है।  ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने बताया कि वर्ष 2017 के लिए दिया जाने वाला 53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती को  उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रदान किया जाएगा।  92 वर्षीय सोबती ने अपने अनूठी लेखन शैली से अलग मुकाम हासिल किया। पुरस्कार के तौर पर कृष्णा सोबती को प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह और 11 लाख रुपये दिए जाएंगे। कृष्णा सोबती ने जिंदगीनामा, मित्रों मरजानी, जैनी मेहरबान और ऐ लड़की समय सरगम जैसी नॉवल्स लिखे हैं।

कृष्णा सोबती को उनके उपन्यास जिंदगीनामाके लिए वर्ष 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उन्हें 1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान साहित्य अकादमी फैलोशिप से नवाजा गया था। भारत सरकार 2010 में उन्हें पद्म भूषण का सम्मान भी देने वाले थे जिसे उन्होंने लेने से इनकार कर दिया था। पुरस्कार चयन समिति की बैठक में कृष्णा सोबती को वर्ष 2017 का ज्ञानपीठ पुरस्कार देने का निर्णय किया गया। इस निणार्यक मंडल में गिरीश्वर मिश्र, शमीम हनफी, हरीश त्रिवेदी, रमाकांत रथ और भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीला धर मंडलोई शामिल हैं। बता दें बीते साल यह पुरस्कार बांग्ला के मशहूर कवि शंख घोष को दिया गया था।

ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई २२ भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है। बता दें कि कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात में 18 फरवरी 1925 को हुआ था। विभाजन के बाद सोबती दिल्ली में आकर बस गईं और तब से यही रहकर साहित्य सेवा कर रही हैं।

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