राशन घोटाले के बाद दिल्ली सरकार का एक और बड़ा कारनामा सामने आया है। फंड की कमी का रोना रोकर दिल्ली में कई प्रोजेक्ट को न करने का बहाना बनाने वाली दिल्ली सरकार की पोल खुल गई है। सीएजी की ओर से साल 2016-17 के लिए पेश की गई रिपोर्ट ने कई हैरतंगेज सवालों को पैदा कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक़, कई प्रस्ताव के लिए हजारों करोड़ रखे थे, लेकिन फिर भी खर्च नहीं किए जा सके। जिसके तहत 10 हजार करोड़ रुपए का दिल्ली के विकास के लिए इस्तेमाल ही नहीं किया जा सका।
रिपोर्ट में पेश किए गए आंकड़ो के मुताबिक़, साल 2016-17 में खर्च करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा कुल 47,429 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया था, लेकिन साल खत्म होते तक सिर्फ 37,620 करोड़ ही खर्च किए जा सकें यानि 9,800 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च ही नहीं हो सकी। ठीक इसी तरह 2015-16 में भी सरकार आवंटित बजट से कम राशि खर्च कर पाई थी। उसके पास खर्च के लिए 41,129 करोड़ रुपये आवंटित थे, लेकिन 37,690 करोड़ ही खर्च हो सके और 3,164 करोड़ की राशि बिना खर्च के ही पड़ी रह गई।
सड़क और पुलों के निर्माण में सरकार ने खुद बजट में 1031 करोड़ रुपये की राशि का आवंटन किया था। इनमें से सरकार केवल 662.19 करोड़ रुपये ही खर्च कर सकी। बड़ी बात यह है कि कैग ने कहा है कि सरकार कोई भी नया पुल का कार्य करने में विफल रही है। इस कारण दिल्ली की सड़कों के नेटवर्क में विस्तार नहीं हो पाया है।
इतना ही नहीं सरकारी स्कूल बिल्डिंग के आउटसोर्सिंग के काम के लिए 580 करोड़ बजट का आवंटन हुआ। इसमें से सरकार केवल 201.95 करोड़ ही खर्च कर पाई। इसी तरह स्कूलों में अतिरिक्त सुविधाओं के लिए 2968.14 करोड़ फंड आवंटन हुआ, जिसमें 2586.72 करोड़ खर्च हुए।
सूचना एवं प्रचार निदेशालय में 207.68 करोड़ के फंड में से महज 71.65 करोड़ ही खर्च हो पाए। दिल्ली स्वास्थ्य मिशन के तहत 257 करोड़ के आवंटित फंड में से 175.68 करोड़ ही खर्च हुए। लोक निर्माण विभाग की सड़कों के रखरखाव पर 100 करोड़ का आवंटन हुआ, जिसमें से 28.68 करोड़ ही खर्च हुए।
मालूम रहे कि जिन विभागों में सबसे अधिक राशि खर्च नहीं हुई वह विभाग उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया एवं लोक निर्माण विभाग मंत्री सत्येंद्र जैन के अधीन आते हैं।