कल राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी की सब कैटेगरी के परीक्षण के लिए पांच सदस्यीय आयोग का गठन किया। इस आयोग का गठन दिल्ली हाईकोर्ट की सेवानिवृत जज जी. रोहिणी की अध्यक्षता में की गई।

राष्ट्रपति की ओर से जारी इस विज्ञप्ति के अनुसार, राष्ट्रपति ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत की गई व्यवस्था के अनुरूप आयोग का गठन किया है। यह फैसला महात्मा गांधी की सबको सामाजिक न्याय दिलाने के सिद्धांत को व्यवहार में उतारने और पिछड़े वर्ग में सभी को न्याय दिलाने के सरकार के प्रयासों के तहत किया गया है।

इस आयोग में जस्टिस रोहिणी के अलावा समाजनीति समीक्षण केंद्र के निदेशक डॉ. जेके बजाज को भी सदस्य बनाया गया है। जबकि आयोग में भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के निदेशक और महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त को पदेन सदस्य नियुक्त किया गया है और पांचवे सदस्य के रूप में सामाजिक एवं अधिकारिता विभाग के संयुक्त सचिव आयोग के सचिव होंगे।

दरअसल यह आयोग ओबीसी कैटेगरी के वर्गीकरण पर विचार करेगा। कार्यभार ग्रहण करने के 12 हफ्ते के भीतर यह आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को देगा। आयोग की सिफारिश के बाद केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि आरक्षण का लाभ अन्य पिछड़ा वर्ग के सभी जातियों तक समान रूप से पहुंचे।

  • हालांकि इस नवगठित आयोग का मुख्य काम इन तीन बिंदुओं पर विचार करना होगा।
  • ओबीसी के अंदर केंद्रीय सूची मे शामिल जातियों को क्या उनकी संख्या के अनुरूप सही मात्रा में आरक्षण का लाभ मिल रहा है?
  • अगर नहीं तो इनका वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है?
  • आयोग इसके मांपदंडो पर भी विचार करेगा। यह आयोग उन जातियों की संख्या और पिछड़ेपन को ध्यान में रखकर नई सूची तैयार करेगा।

गौरतलब है कि पिछड़ा वर्ग आयोग लंबे समय से आरक्षण का लाभ सभी जातियों तक पहुंचाने के लिए पिछड़ी जातियों को उप वर्गों में बांटने की सिफारिश करता रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय कैबिनेट ने 23 अगस्त को ओबीसी की केंद्रीय सूची के वर्गीकरण के लिए आयोग बनाने के फैसले को मंजूरी दी थी।

वहीं इसे बीजेपी के राजनीतिक दाव के रूप में भी देखा जा रहा है। इसकी वजह यह भी है कि इसका गठन गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले किया गया है। ऐसा माना जा रहा है कि इस आयोग के गठन को लेकर विपक्षी पार्टियां विशेषत: मंडल आयोग की राजनीति से उपजी पार्टियां जरूर विरोध करेंगी। इनमें लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव विशेष रूप से शामिल हैं।

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