एक बार फिर यह बात साबित हो गई कि आम आदमी का दुख आम आदमी ही समझ सकता है, कोई प्रशासन या सरकार नहीं। उत्तराखंड के शिक्षिका मामले में भले ही शिक्षिका ने अपना आपा खोते हुए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ बदतमीजी की हो लेकिन अगर नियम-कानून और नैतिकता की बात देखी जाए तो शिक्षिका भी अपनी जगह उचित है। दरअसल, शिक्षिका उत्तरा पंत के मुताबिक वह पिछले 25 साल से दुर्गम क्षेत्र में अपनी सेवायें दे रही है और अब अपने बच्चों के साथ रहना चाहती हैं। क्योंकि, उनके पति की मृत्यु हो चुकी है और अब वह देहरादून में अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ना चाहतीं। वहीं अगर सीएम रावत की पत्नी का हाल देखा जाए तो उऩ्होंने चार साल दुर्गम स्थान पर काम करने के बाद अपना तबादला देहरादून करा लिया और तब से लेकर अब तक वह 22 साल से वहीं की वहीं कार्यरत हैं जबकि बीच में उनका प्रमोशन भी किया गया।

इस मामले में विपक्षी कांग्रेस भी सत्ताधारी भाजपा पर हमलावर है। खबरों के मुताबिक, सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी सुनीता रावत 1996 से देहरादून के अजबपुर कलान के एक स्कूल में पोस्टेड हैं। साल 2008 में पदोन्नति मिलने के बाद भी वे अभी तक वहीं पर तैनात है। जबकि पिछले तीन साल से देहरादून आने के लिए अपने ट्रांसफर की गुहार लगाने वाली एक महिला प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया जाता है। महिला का कहना है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करती रहेगी और इसके लिए वह कोई भी सजा भुगतने के लिए तैयार हैं।

बता दें कि 28 जून को सीएम रावत जनता की समस्याओं को सुन रहे थे। इसी दौरान महिला प्रिंसिपल ने वहां हंगामा शुरू कर दिया। वहां मौजूद पुलिसकर्मी और अफसर उसे रोकने की कोशिश करते रहे, लेकिन वह नहीं मानीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि शांत हो जाओ तो नहीं तो निलंबित हो जाओगी। मुख्यमंत्री के आदेश पर जब प्रिंसिपल को महिला पुलिसकर्मी बाहर ले जा रही थीं, तभी महिला ने मुख्यमंत्री रावत के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।

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