सुनो भई साधो –70 सालों बाद भारत में दौड़े चीते, क्यों छूटा था चीतों का साथ, जानिए पूरी बात

चीते अब बाकायदा भारतीय वन्य जीवन की जैव विविधता में शामिल हो चुके हैं। चीतों की संख्या कुल आठ है। जिनमें तीन नर और पांच मादा चीता हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें अपना नया आशियाना पसंद आए। और समय के साथ साथ इनके कुनबे में बढ़ोत्तरी हो। जंगल सफारी के शौकीन जब भी कूनो नेशनल पार्क घूमने जाएंगे …तो खुले में इन चीतों का विचरते देख उन्हें काफी खुशी होगी।

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प्रधानमंत्री मोदी ने इन शब्दों के साथ भारत के वन्य जीव इतिहास मे एक नया अध्याय जोड़ा है। 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन था। और यह दिन देश और मध्य प्रदेश के लिए इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया है। मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से मंगाए गए 8 चीतों को छोड़ कर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जन्म दिन को तो यादगार बनाया ही है, देश के वन्य जीव प्रेमियों को भी एक शानदार तोहफा दिया है। लेकिन सवाल यह है कि देश के प्रचुर जैव विविधता से भरे वन्य जीवन में ऐसी क्या जरुररत आन पड़ी कि चीतों को किसी दूसरे देश से मंगाना पड़ गया। जानेंगे इस पूरी कवायद के पीछे के बात…. जुड़े रहिए हमारे साथ……नमस्कार….मैं मनीष राज…मेरे साथ …आप सुन रहे हैं ……समससामयिक चर्चाओं का विशेष पॉडकास्ट सुनो भई साधो…. इस खास कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।

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साधो …हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि कह गए हैं…अति सर्वत्र वर्जयेत् …..मतलब यह कि हर हाल में किसी भी प्रकार की अति किए जाने से बचना चाहिए। हमारे देश में जंगलों में मौजूद जीवन-चक्र की जैव –विविधता की प्रचुर श्रृंखला से चीतों के गायब होने की वजह के पीछे यही कारण छुपा हुआ है। भारतीय जंगलों के चीते इंसानों की अति का शिकार बन गए। बात यह है कि देश की आजादी से पहले जब देश में राजे-रजवाड़ों का , अंग्रेजों का राज था…तब जंगलों मं जाकर तरह तरह के वन्य जीवों का शिकार करना एक उम्दा शौक माना जाना जाता था। तब शिकार किए जाने वाले जीवों में हिरण, चीतल, जंगली सूअर, खरगोश चीते, तेंदुए और बाघ भी शामिल होते थे। चीते की सुंदरता और स्वभाव से अच्छी तरह रुबरु होने के बाद एक दौर में इंसान इन चीतों को पालने भी लगा। जिससे इनकी प्राकृतिक बढ़ोतरी में अवरोध पैदा हो गया। धीरे-धीरे इनकी संख्या भारत के जंगलों से कम होने लगी औऱ एक दिन जंगलों में इनका दिखाई देना बंद हो गया। सरकार की ओर से 1952 में भारतीय जंगलों और वन्य जीव की श्रृंखला में चीतों की प्रजाति आधिकारिक रुप से विलुप्त घोषित कर दी गई।

यही वजह है कि श्योपुर के कूनो अभयारण्य में चीतों को छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि कि आज हमने अतीत में की गई गलतियों को सुधारा है…बिलकुल सही है। भारत आज पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है हम तकनीकी और अर्थव्यवस्था के विकास के साथ साथ पर्यावरण का भी ख्याल रख सकते हैं। लेकिन पर्यावरण का ख्याल रखना एक दिन की योजना नहीं है।

इन चीतों के भारत लाए जाने के पीछे की कवायद भी कम नहीं हुई है। इससे पहले भी देश में चीतों के संरक्षण की कोशिशें हुईं हैं। साल 1952 में चीतों की प्रजाति की विलुप्ति की आधिकारिक घोषणा के बाद 1970 के दशक में ईरान से एशियाई शेरों के बदले एशियाई चीतों को भारत लाए जाने के लिए बात शुरू हुई। लेकिन ईरान में चीतों की कम आबादी को देखते हुए तब कोशिशें परवान नहीं चढ़ी। फिर एक बार 2009 में देश में चीतों को लाने की कोशिशें नए सिरे से शुरू हईं। इसके लिए ‘अफ्रीकन चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट’ प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इसके तहत 2010 से 2012 के दौरान देश के दस वन्य अभयारण्यों का सर्वेक्षण किया गया। लेकिन अंत में मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क को अपने खुले घास के मैदानों की वजह से चीतों के लिए सबसे सही माना गया। फरवरी 2022 में सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि चीता प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने 38 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। नामीबिया से चार्टर् जहाज से आए ये चीते इसी प्रोजेक्ट के तहत आए हैं।

बहरहाल चीते अब बाकायदा भारतीय वन्य जीवन की जैव विविधता में शामिल हो चुके हैं। चीतों की संख्या कुल आठ है। जिनमें तीन नर और पांच मादा चीता हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें अपना नया आशियाना पसंद आए। और समय के साथ साथ इनके कुनबे में बढ़ोत्तरी हो। जंगल सफारी के शौकीन जब भी कूनो नेशनल पार्क घूमने जाएंगे …तो खुले में इन चीतों का विचरते देख उन्हें काफी खुशी होगी।

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