एक, दो मंजिल का छोटा सा मकान छोट-छोटे बच्चे और असहाय मां-बाप। दिनभर मजदूरी से जो मिलता वो रात के पेट पालने तक खत्म हो जाता। ऐसे में जब कोई प्राकृतिक आपदा आन पड़ती है तो मुंह का वो निवाला भी छिन जाता है। कुछ ऐसा ही हाल इस समय बिहार में देखने को मिल रहा है जहां कम से कम 70 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। लोगों को हर तरफ पानी नहीं मौत का मंजर दिख रहा है। शासन और प्रशासन लोगों को बचाने का काम तो कर रही लेकिन सिर्फ उतना ही जितना मीडिया की रिपोर्ट में आ सके। ऐसी प्राकृतिक आपदा में कईयों की जान गुमनामी में चली जाती है।

राज्य के 21 जिलों में बाढ़ से भारी तबाही मची है। सबसे ज्यादा किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, एवं मधेपुरा जैसे क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हैं। अब तक 60 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग मौत के कगार पर हैं। हालांकि कई लोगों को बचाने का काम सेना कर रही है। इस वक्त 2 लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। वहीं तकरीबन एक लाख लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। सेना खाने का पैकेट, साफ पानी, बच्चों के लिए दूध आदि मूलभूत आवश्यकताएं मुहैया करा रही है। बचाव कार्य में सेनाओं की अलग-अलग टीम बनाई गई हैं जो सैकड़ों नौकाओं की मदद से जो घऱ में कैद हो गए हैं, उनकी मदद कर रही है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी हवाई सर्वेक्षण कर स्थिति का जायजा ले रहे हैं। इस विकराल समय में केंद्र सरकार भी राज्य सरकार की पूरी तरह मदद कर रही है। लेकिन अभी भी काफी लोग बहुत बुरी स्थिति से गुजर रहे हैं। बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश के भी कई इलाके बाढ़ से ग्रसित हैं। बता दें कि इस समय भारत के कई राज्य बाढ़ समस्या से प्रभावित हैं। कुछ दिन पहले पीएम मोदी ने असम और गुजरात का भी हवाई सर्वेक्षण कर बाढ़ प्रभावित इलाकों का जायजा लिया था।

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