उत्तर प्रदेश की योगी सरकार यूपी में एक के बाद एक बदलाव लाई जा रही है। हालांकि उन पर ये भी इल्जाम लग रहे हैं कि वो मुस्लिम समाज को टारगेट करके इस तरह के बदलाव कर रही हैं। इसी तरह एक और बदलाव पर योगी सरकार विचार कर रही है। बदलाव ये है कि शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड का विलय करके उत्तर प्रदेश मुस्लिम वक्फ बोर्ड का गठन कर दिया जाए। इसके लिये शासन से प्रस्ताव भी मांगा गया है। प्रदेश के वक्फ राज्यमंत्री मोहसिन रजा ने बताया कि उनके विभाग के पास पत्रों के माध्यम से ऐसे अनेक सुझाव आये हैं कि शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड का परस्पर विलय कर दिया जाए, ऐसा करना कानूनन सही भी होगा।
इस खबर के बाद यूपी के सियासत में भूचाल आ गया। एक तरफ जहां शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने इसका विरोध शुरू कर दिया है तो वहीं आजम खान ने वक्फ बोर्ड के विलय की संभावना पर गहरी नाराजगी जतायी है। उन्होंने कहा है कि यह बिल्कुल गलत है, यह संभावना एकदम खारिज की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मैंने खुद मंत्री रहते हुए दोनों बोर्ड के विलय को लागू नहीं किया था। आजम ने कहा कि मैं आज भी नहीं चाहता कि दोनों का विलय हो जाए। उन्होंने भाजपा को माफी मांगने की हिदायत भी दी। हालांकि इस मामले में ज्यादा तूल पकड़ता, उससे पहले ही अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के कैबिनेट मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी ने कहा है कि सरकार इस तरह के किसी भी मामले पर कोई विचार नहीं कर रही है।
इस मामले में मोहसिन रजा ने तर्क दिया है कि “उत्तर प्रदेश और बिहार को छोड़कर बाकी 28 राज्यों में एक-एक वक्फ बोर्ड है। वक्फ एक्ट-1995 भी कहता है कि अलग-अलग शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड गठित करने के लिये कुल वक्फ इकाइयों में किसी एक तबके की कम से कम 15 प्रतिशत हिस्सेदारी होना अनिवार्य है। उत्तर प्रदेश इस वक्त इस नियम पर खरा नहीं उतर रहा है.” रजा बोले कि इस समय सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास एक लाख 24 हजार वक्फ इकाइयां हैं जबकि शिया वक्फ बोर्ड के पास पांच हजार से ज्यादा इकाइयां नही हैं, जो महज चार प्रतिशत ही है। कानूनन देखा जाए तो यह पहले से ही गलत चल रहा है।