देश में रॉयल बंगाल टाइगर की संख्या तेजी से घटी तो इनके संरक्षण के लिए सरकार, वाइल्ड लाइफ सोसायटी ऑफ इंडिया और गैर सरकारी संगठनों ने प्रयास किये…राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने साल 2009 में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में एक स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स बनाने की मंजूरी दी थी…जिससे कि, इनके शिकार पर लगाम लगाया जा सके…बाघों को अपना परिवार बढ़ाने के साथ ही उन्हें शिकार के लिए पूरी आजादी मिल सके…लेकिन, अफसोस इस बात का कि, विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके जंगल की शान रॉयल बंगाल टाइगर को बचाने की दिशा में जस वर्षों बाद भी स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन नहीं हो सका है…उस समय टाइगर रिजर्व की संवेदनशीलता और दुर्गम क्षेत्रों को ध्यान में रखकर देश के 13 टाइगर रिजर्व को इस प्रोटेक्शन फोर्स को बनाने की मंजूरी मिली थी…लेकिन सरकारों की हीलाहवाली के चलते यह फोर्स आज तक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में ही नहीं बन पाई है…जहां बाघों को चहलकदमी करने और उनका रौद्र रुप देखने के लिए सैलानी खींचे चले आते हैं…

बाघों की सुरक्षा के लिए गठित होने वाली 84 सदस्यीय फोर्स के सभी खर्चे एनटीसीए को देने हैं…कॉर्बेट प्रशासन की मानें तो इस फोर्स के गठन पर कार्यवाई चल रही है…राज्य में होने वाली वन रक्षकों की भर्ती के साथ इसका गठन कर लिया जायेगा…ये अलग बात है कि, बड़े अधिकारी और रसूखदार कई मौकों पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पिकनिक मनाते देखे गए हैं…ऐसे में बाघों की सुरक्षा को लेकर सरकारी नीति पर गंभीर सवाल उठते हैं…सवाल ये कि, क्या सरकार को दहाड़ की खामोशी का इंतजार है…?

उत्तर प्रदेश से लगी कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की दक्षिणी सीमा हमेशा से संवेदनशील रही है…कॉर्बेट से कई बार शिकारियों को भी पकडा गया है…इसके साथ ही बाघ को पकडने वाले कड़के भी यहां से बरामद हुए हैं…बावजूद इसके केंद्र और राज्य सरकारें बाघों की सुरक्षा के प्रति उदासीन रवैया अपनाये हुए हैं…क्या ये हीलाहवाली अपनी दहाड़ और शिकार पर शानदार पकड़ वाले बाघ की जंगल से हमेशा के लिए विदाई के इंतजार में है…

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