‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ लिखने वाले Allama Iqbal की है आज जयंती, पढ़ें उनके कुछ पसंदीदा शेर…

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Allama Iqbal

आज अल्लामा इकबाल की जयंती है। इकबाल का असली नाम मुहम्मद इकबाल था। सम्मान देने के लिए बाद में उनके नाम के फारसी के शब्द ‘अल्लामा’ का इस्तेमाल किया जाने लगा था। वे फारसी, उर्दू, पंजाबी और अंग्रेजी के लोकप्रिय शायर थे। उनकी रचनाएं आज भी उनके चाहने वालों की जबान पर रहती हैं।

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

इकबाल का जन्म 9 नवंबर 1877 को सियालकोट, पंजाब (आज के पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता का नाम शेख नूर मुहम्मद और माता का नाम इमाम बीबी था। अपनी शुरुआती शिक्षा हिंदुस्तान में पूरी करने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए यूरोप गए। जहां से उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की।

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

यूरोप से लौटने के बाद उन्होंने लाहौर के एक कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया साथ ही वकालत भी शुरू की। इस दौरान वे अंजुमन-ए-हिमायत-ए-इस्लाम से जुड़ गए।

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख

उन पर पश्चिम के विद्वान नीत्शे, बर्गसन और गेटे का काफी प्रभाव था। साथ ही रूमी का उनकी सोच पर गहरा असर था। इसके अलावा इस्लाम के अध्ययन में उनकी दिलचस्पी बचपन से ही थी। वक्त के साथ वे मुस्लिम एकता ‘उम्माह’ के पैरोकार बन गए।

तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

इकबाल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आलोचक थे। वे मुस्लिम लीग के सदस्य रहे लेकिन 1920 के दशक के दौरान, मुस्लिम लीग में गुटबाजी से दुखी थे। इकबाल का मानना था कि केवल मुहम्मद अली जिन्ना ही एक राजनेता थे जो एकता को बनाए रखने और मुस्लिम राजनीतिक सशक्तिकरण के लीग के उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम थे।

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

माना जाता है कि उन्होंने ही जिन्ना को लंदन से भारत लौटने और लीग की कमान संभालने के लिए राजी किया था। कुछ तो यहां तक कहते हैं कि इकबाल के चलते ही जिन्ना ने पाकिस्तान के विचार को अपनाया।

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा

इकबाल की रचनाओं की बात की जाए तो अंग्रेजी भाषा में उनकी The Development of Metaphysics in Persia और The Reconstruction of Religious Thought in Islam काफी लोकप्रिय हैं। इसके अलावा उर्दू में उन्होंने सारे जहां से अच्छा,तराना-ए-मिली, जर्ब-ए-कलीम, अरमुगन-ए-हिजाज जैसी रचनाएं कीं। फारसी की बात की जाए तो असरार-ए-खुदी, रुमुज-ए-बेखुदी , पयाम-ए-मशरिक , जबर-ए-अजम उनकी रचनाएं हैं।

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

1933 में, स्पेन और अफगानिस्तान की यात्रा से लौटने के बाद, इकबाल एक गले की बीमारी से पीड़ित हो गए। 21 अप्रैल 1938 को लाहौर में इकबाल की मृत्यु हो गई।

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