Allahabad HC:T20 World Cup में भारत की हार पर खुशी मनाने वाले कश्‍मीरी छात्रों को Court से मिली जमानत

Allahabad HC: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीते अक्तूबर में टी-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत के हारने और पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने के मामले में तीन कश्मीरी छात्र अरशद यूसुफ, इनायत अलताफ और शौकत अहमद गनी की जमानत मंजूर कर ली है। ये आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने दिया।

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Allahabad HC: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीते अक्तूबर में टी-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत के हारने और पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने के मामले में तीन कश्मीरी छात्र अरशद यूसुफ, इनायत अलताफ और शौकत अहमद गनी की जमानत मंजूर कर ली है। ये आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने दिया।

24 अक्तूबर को टी-20 वर्ल्ड कप क्रिकेट के मुकाबले के दौरान भारत पर पाकिस्तान की जीत हुई थी। उसके बाद आगरा के आरबीएस कॉलेज के बिचपुरी कैम्पस के हॉस्टल के ग्रुप में पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने और कश्मीर को अपना देश बताने जैसी पोस्ट की गई थी।

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Allahabad HC: पोस्‍ट वायरल होने पर भाजयुमो ने किया था प्रदर्शन

इस पोस्ट के वायरल होने पर भारतीय जनता युवा मोर्चा के गौरव राजावत और शैलू के साथ कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया था। कॉलेज के वार्डेन दुष्यंत कुमार ने कश्मीरी छात्रों को कॉलेज प्रबंधन द्वारा निलंबित करने की जानकारी दी। उसके बाद गौरव राजावत व शैलू की तहरीर पर तीनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।आरोप लगाया गया कि तीनों छात्रों ने देश विरोधी नारे लगाए और अराजकता फैलाने की कोशिश की। तीनों कश्मीरी छात्रों की मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेशी के दौरान वकीलों और अन्य लोगों ने पिटाई कर दी थी।

Allahabad HC: वकीलों ने छात्रों की पैरवी से किया था इंकार
वकीलों ने उनकी पैरवी करने से इनकार कर दिया था। हालांकि बाद में अपने कर्तव्य और मानवाधिकार को मानते हुए वकीलों ने यह निर्णय वापस ले लिया था।

अधिवक्ता दीपक चौधरी ने बताया की तीनों छात्रों की जमानत के समर्थन में कहा गया कि वे पांच महीने से अधिक समय से जेल में बंद हैं। साथ ही जो चैट वायरल हुई थी, वह पहले की थी। छात्रों ने आपस में मजाकिया तौर पर एक-दूसरे को कमेंट किए थे। यह सिर्फ खेल भावना थी, जिसे राजनीतिक कारणों से मुद्दा बनाया गया।

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Allahabad HC: सरकारी कर्मचारी के खिलाफ हल्के में न करें विभागीय जांच

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच को हल्के में (कैजुएल) नहीं लिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्रवाई में न्याय हुआ ही नहीं। नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। ये आदेश न्यायमूर्ति एमके. गुप्ता तथा न्यायमूर्ति डॉ योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है।

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा न्यायाधिकरण, लखनऊ के आदेश को बरकरार रखा है। अधिकरण ने राज्य द्वारा मृतक कर्मचारी के खिलाफ दिए दंड को रद्द कर दिया है। मालूम हो कि सरकारी कर्मचारी/प्रतिवादी संख्या 2 (मृतक) के खिलाफ विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई । जब वह जहानाबाद, जिला पीलीभीत में संग्रह अमीन के रूप में तैनात था। आरोप की जांच की गई । जिसमें कर्मचारी को दोषी करार दिया गया।

विभाग ने कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और जवाब के बाद 30 अप्रैल 2005 को उसे प्रतिकूल प्रविष्टि के अलावा मूल वेतनमान में वापस कर दिया गया। सजा के खिलाफ अपील और पुनरीक्षण भी खारिज हो गई। अधिकरण में इन आदेशों को चुनौती दी गई। अधिकरण ने कहा कि कर्मचारी को अपने पक्ष में सबूत पेश करने और बचाव का उचित अवसर नहीं दिया गया। इसी दौरान याची कर्मचारी की मौत हो गई। अधिकरण ने सभी आदेशों को निरस्त कर दिया। जिसे राज्य सरकार ने चुनौती दी थी।

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