यूपी के दंगल में एक बार फिर से उबाल आ रहा है। अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव में एक बार फिर से जोरा जोरी होने के कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन इन कयासों के बीच अखिलेश यादव फिर से बाजी मार गए और विपक्ष के नेता की कुर्सी पर अपना दावा ठोक दिया।

दरअसल अखिलेश गुट ने 28 मार्च यानि मंगलवार को बैठक बुलाई थी जिसमें सभी विधायकों को आमंत्रित किया गया था और वहीं मुलायम खेमे ने 29 मार्च को बैठक की घोषणा की थी लेकिन बाद में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने बैठक को रद्द कर दिया। इन्हीं दो अलग अलग बैठकों ने सपा में चल रहे मुनमुटाव की तरफ इशारा किया और फिर जब अखिलेश की बैठक में मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव और आज़म खां नहीं पहुंचे तो ये इशारा विश्वास में बदल गया।

Akhilesh Yadav became the leader of the Legislature Party - 1मुलायम सिंह यादव, आज़म खां को विपक्ष नेता बनाने चाहते थे, लेकिन विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष चुनने का अधिकार अखिलेश यादव को दिया गया था, चूंकि राम गोविंद चौधरी, अखिलेश यादव के करीबी माने जाते हैं तो चर्चाएं थी कि नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद होंगे।

मंगलवार सुबह करीब 10 बजे लखनऊ में समाजवादी दफ्तर में सभी विधायकों और एमएलसी की बैठक शुरु हुई। जहां सपा विधायकों व विधान परिषद सदस्यों की मौजूदगी में अखिलेश यादव को विधानमंडल दल का नेता चुना गया यानि अखिलेश यादव विधान परिषद में विपक्ष के नेता होंगे।

बता दें इससे पहले हुई बैठक में सपा यूथ टीम का स्लोगन बदला गया था। काम बोलता है स्लोगन असरदार साबित नहीं हुआ तो नया नारा बनाया गया आपकी साइकिल चलेगी सदा आपके नाम से, फिर प्रदेश का दिल जीतेंगे हम अपने काम से। अखिलेश यादव अब लोकसभा चुनाव के लिए सियासी दांव लगाने में जुट गए हैं।

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