आखिरकार रोहिंग्या मुसलमानों को उनके घर वापस भेजने की शुरुआत हो गई। खास बात ये है कि केंद्र सरकार के इस एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने भी हामी भर दी है। जी हां, केंद्र सरकार ने पहली बार भारत में अवैध रूप से रह रहे 7 रोहिंग्या लोगों को वापस म्यांमार भेजने का फैसला लिया है। इन 7 रोहिंग्याओं के पहले बैच को आज वापस भेजने की तैयारी है। इस बीच ऐक्टिविस्ट ने इस मामले में न्यायिक दखल की मांग की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने महज कुछ घंटों बाद मणिपुर से रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने पर रोक लगाने से गुरुवार को साफ इनकार कर दिया। भारत की तरफ से आधिकारिक तौर पर म्यांमार प्रत्यर्पण का यह पहला मामला है। वकील प्रशांत भूषण ने इस में सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की थी और कहा था कि यह अदालत का कर्तव्य है कि वह राज्य विहीन रोहिंग्या शरणार्थियों की रक्षा करे।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रशांत भूषण से कहा कि उन्हें इस बात को याद दिलाने की कोई आवश्यता नहीं है कि जजों की क्या जिम्मेदारियां हैं। बता दें कि गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि ‘म्यांमार के नागरिकों’ को उनके अपने देश भेजा जाएगा। म्यांमार में उनके खिलाफ हिंसा होने के चलते बड़े पैमाने पर रोहिंग्याओं को भारत और बांग्लादेश के लिए पलायन करना पड़ा था। सातों रोहिंग्या असम के सिलचर स्थित हिरासत केन्द्र में बंद हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक गुरुवार को मणिपुर की मोरेह सीमा चौकी पर सात रोहिंग्या प्रवासियों को म्यांमार के अधिकारियों को सौंपा जाएगा।

बता दें कि सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर कानूनी अधिकारी तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि म्यांमार सरकार ने इस बात को माना है कि वे उनके नागरिक हैं और उनको पहचान के लिए सार्टिफिकेट दिए हैं ताकि उनकी वापसी हो सके।

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