विधानसभा चुनाव में दो युवाओं की जोड़ी भले ही कमाल ना कर पाई हो, लेकिन गोरखपुर और फूलपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव में बुआ और बबुआ की जोड़ी ने रंग जमा दिया। दोनों लोकसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी की जीत इसलिए अहम नहीं है, कि, इस जीत से उनके कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह जगा है। बल्कि, ये जीत इसलिए मायने रखती है, क्योंकि सपा-बीएसपी गठबंधन ने सीएम और डिप्टी सीएम का किला ध्वस्त कर दिया है।

मुख्यमंत्री योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सीटों पर बीजेपी की हार बीजेपी के लिए इसलिए भी बड़ी है, क्योंकि इस हार से उसके मिशन 2019 को धक्का लगा है और पीएम मोदी की छवि भी इस हार से कुछ हद तक कम से कम यूपी में प्रभावित जरूर हुई है। गोरखपुर और फूलपुर में बीजेपी की करारी हार का असर 2019 के चुनाव में दिखेगा।

23 साल बाद सपा-बसपा का साथ आना दोनों के लिए फायदेमंद रहा है। इस दोहरी जीत से उम्मीद बढ़ गई है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में दोनों दल इस गठबंधन को मूर्त रूप देने में जुटेंगे। मायावती के घर जाकर अखिलेश का मुलाकात करना यूं ही नहीं है। अखिलेश और माया दोनों ही जानते हैं कि अगर मोदी और शाह की जोड़ी को पस्त करना है तो मिलकर काम करना ही होगा। अकेले-अकेले लड़कर किसी को फायदा नहीं होगा।

इस उपचुनाव में सबसे ज्यादा फजीहत कांग्रेस की हुई है, जिसके उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। कभी पूरे देश पर राज करने वाली बीजेपी आज इतना सिकुड़ गई है कि उसका अस्तित्व क्षेत्रीय दलों से भी बौना हो गया है। कांग्रेस के पास एक विकल्प ये हो सकता है, कि 2019 के चुनाव और अपनी हालत को देखते हुए वो भी चुपचाप इस महागठबंधन का हिस्सा बन जाए। गोरखपुर और फूलपुर की हार बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है। केंद्र और यूपी दोनों जगह बीजेपी की सरकार है, ऐसे में पार्टी दूसरों को दोष देकर भी अपना बचाव नहीं कर सकती। बात विकास की हो या फिर राजनीतिक प्रबंधन की, हर मोर्चे पर पार्टी बुरी तरह से नाकाम रही है।

लोकसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है। नरेन्द्र मोदी को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में सबसे बड़ा हाथ यूपी का रहा है। जहां की 80 सीटों में 73 पर उसने गठबंधन के साथ जीत हासिल की थी। लेकिन अब जबकि माहौल पूरी तरह बदला नजर आ रहा है, ऐसे में मोदी और योगी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल हालात को दोबारा अपने पक्ष में करने की होगी। लेकिन, इस बार ये काम पहले से ज्यादा मुश्किल होगा। क्योंकि, 23 साल बाद एक साथ आए सपा और बसपा ने काफी लंबे वक्त के बाद बड़ी जीत का स्वाद चखा है और दोनों ही इस जीत का आगे भी जारी रखने के लिए पूर्ण रूप से गठबंधन का एलान कर सकते हैं।

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