बिहार के प्रसिद्ध तबला वादक संदीप दास को ग्रैमी अवार्ड से नवाज़ा गया है। भारतीय तबला वादक संदीप दास को रविवार रात को सिल्क रोड इंसेंबल समूह के साथ बेस्ट ग्लोबल म्यूज़िक के लिए 59वें ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।

भारतीय संगीत का नाम रोशन करने वाले संदीप का जन्म बिहार की राजधानी पटना में सन् 1971 में हुआ था। उन्होंने पटना के सेंट जेवियर स्कूल से पढ़ाई की। संदीप का तबले के साथ लगाव बचपन से ही शुरु हो गया था। जब वह महज 8 साल के थे तभी उन्होंने तबला बजाने के समान्य गुणों को सीख लिया था और 9 साल की ही उम्र में वाराणसी के प्रसिद्ध तबला गुरू पंडित किशन महाराज के पास तहबे का गहन ज्ञान लेने पहुंच गए।

संदीप पर एक प्रसिद्ध तबला वादक बनने के ऐसा जनून सवार था कि वह अपनी पढ़ाई को करते हुए हर शनिवार और रविवार को पटना से वाराणसी आकर गुरूजी से तबला के गुण सीखने लगे। उनके स्कूल में अगर छुट्टी होती तो वह तुरंत बनारस पहुंच जाते थे। बेटे के ऐसे लगण को देखते हुए संदीप के पिता ने भी अपने दफ्तर में तबादले की अर्जी दे दी और पूरा परिवार बनारस पहुँच गया।

पटना से हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया ताकि वह बनारस में ही रहकर पढ़ाई के साथ-साथ तबला वादन भी सीख सकें। अंग्रेजी साहित्य में गोल्ड मेडल के साथ स्नातक करने वाले संदीप ने 11 साल तक बनारस के घराने में तबला वादन सीखा। उसके बाद वह 1991 में दिल्ली गए और ऑल इंडिया रेडियो से अनुबंधित सबसे कम उम्र के तबला वादक भी बने।

इसके बाद संदीप ने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा और एक के बाद एक लगातार कामयाबी की सीड़ियां छड़ते चले गए। उनके तबले की थाप विदेशों में भी गूंजने लगी और लोगों ने उनकी जमकर सराहना भी की। उनके जीवन का सबसे बेहतरीन पल और टर्निंग प्वाइंट तब आया जब चीनी मूल के अमेरिकी संगीतकार यो यो मा ने उन्हें सन् 2000 में सिल्क रूट इंसेंबल के लिए अपने साथ जोड़ा। यो यो मा के साथ जुड़ने के बाद संदीप तबले की दुनिया में नामचीन कलाकार बन गए।

संदीप इससे पहले 2003 और 2009 में भी ग्रैमी अवार्ड के लिए नामांकित हुए थे, लेकिन अवार्ड नहीं मिल पाया। फिर भी तबले की दुनिया में उनका जलवा कायम रहा और अनत: रविवार रात संदीप दास को ग्रैमी सम्मान पाने की उपलब्धि हासिल हुई।

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