प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यशैली और जीवन पर आधारित फिल्म “मोदी का गाँव” को सेंसर बोर्ड ने मंजूरी नहीं दी है। भारतीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अधिकारियों ने इस फिल्म के निर्माता सुरेश झा से इस फिल्म को रिलीज़ करने से पहले निर्वाचन आयोग और प्रधानमंत्री कार्यालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र लाने को कहा है। इसका विरोध करते हुए निर्माता सुरेश झा ने कहा है कि जब दूसरी फिल्मों के लिए ऐसे प्रमाणपत्रों की जरुरत नहीं होती तो मेरी फिल्म के लिए ऐसा क्यूँ कहा जा रहा है?

सेंसर बोर्ड के इस फैसले के बाद फिल्म के निर्माता ने प्रधानमंत्री कार्यालय का दरवाजा खटखटाया है। साथ ही प्रधानमंत्री से मिलने का समय भी माँगा है। फैसले से दुखी झा ने अपने बयान में कहा कि सेंसर बोर्ड ने तीन आपतियां गिनाई हैं। ऐसे में मुझे अपनी फिल्म के रिलीज़ का सपना छोड़ना पड़ सकता है।

नरेन्द्र मोदी के बारे में बनी यह फिल्म उनके द्वारा किये गए कार्यों और योजनाओं जिनमे डिजिटल इंडिया,स्मार्ट सिटी,और स्वच्छ भारत जैसे कार्यक्रम के सपनों को प्रस्तुत करती नजर आएगी। इस फिल्म में मुख्य किरदार प्रधानमंत्री के जैसे दिखने वाले मुंबई के विकास म्हणते ने निभाई है। इस फिल्म की शूटिंग मुंबई के अलावा बिहार के पटना और दरभंगा में भी की गई है। मोदी का गाँव की शूटिंग 2016 के दिसम्बर में पूरी हो गई थी। निर्माता सुरेश झा ने इस फिल्म की रिलीज़ के लिए जनवरी में आवेदन किया था। जिसपर अभी फैसला आया है। इस फिल्म को इसी महीने रिलीज़ होना था।

दरअसल इस फिल्म में प्रधानमंत्री के कार्यों और योजनाओं के साथ उनकी उपलब्धियों का बखान भी किया गया है। जिसमे पाकिस्तान द्वारा उडी हमला और उसके बाद सेना की सर्जिकल स्ट्राइक जैसे गंभीर मुद्दे शामिल हैं। दूसरी आपत्ति जो सेंसर बोर्ड ने जाहिर कि है वह इसके राजनीतिक फायदे को दर्शाता है। सेंसर बोर्ड ने अपने फैसले में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का हवाला दिया और कहा कि हम नहीं चाहते की इस फिल्म का फायदा किसी पार्टी को हो। इसलिए हम निर्वाचन आयोग और प्रधानमंत्री कार्यालय से हरी झंडी मिलने का इंतजार करेंगे। सेंसर बोर्ड ने समाचार चैनलों पर चलाये गए ख़बरों की क्लिप को प्रयोग में लाने पर भी आपति जताई है। इन सब विवादों के बाद अब “मोदी का गाँव” कब देखने को मिलेगी इस पर फ़िलहाल संशय कायम है।

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