2020 में हुए दिल्ली दंगों (Delhi Riots) की जांच को लेकर दिल्ली पुलिस को दिल्ली हाईकोर्ट (High Court) ने फटकार लगाते हुए कहा कि विभाजन (Partition) के बाद से दिल्ली के इतिहास में सबसे खराब सांप्रदायिक दंगों की जांच में विफलता के लिए दिल्ली पुलिस को याद किया जायेगा।
Bar & Bench (B&B) के अनुसार, कड़कड़डूमा जिला न्यायालय में अतिरिक्त सत्र Justice न्यायाधीश विनोद यादव ने दंगों में तीन आरोपियों को आरोपमुक्त करने का आदेश पारित करते हुए यह टिप्पणी की। तीन आरोपियों शाह आलम, राशिद सैफी और शादाब को बरी करते हुए अदालत ने कहा कि यह करदाताओं की गाढ़ी कमाई की भारी बर्बादी है और पुलिस का इस मामले की जांच करने का कोई वास्तविक इरादा नहीं था। तीनों पर फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी के चांद बाग इलाके में एक दुकान को लूटने और तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया गया था।
Court ने कहा कि जांच की इतनी लंबी अवधि के बाद भी पुलिस ने मामले में केवल पांच गवाह पेश किए थे। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि पुलिस केवल तीन लोगों को गिरफ्तार करने में कामयाब रही है, जिसमें रिपोर्ट के अनुसार सैकड़ों की भीड़ शामिल है। उन्होंने कहा कि जांच के नाम पर “केवल अदालत की आंखों पर धूल झोंकने की कोशिश की गई और कुछ नहीं। अदालत ने यह भी कहा कि कई आरोपी पिछले डेढ़ साल से जेलों में बंद हैं, क्योंकि पुलिस अभी भी उनके मामलों में पूरक आरोप पत्र दाखिल कर रही है।
बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान लूटपाट और परिसर में आग लगाने के आरोप में दर्ज चार प्राथमिकी यह कहते हुए रद्द कर दी कि एक ही जैसी घटना में पांच अलग-अलग एफ़आईआर दर्ज नहीं की जा सकती हैं। इसे सुप्रीम कोर्ट के द्वारा तय किए गए नियमों के खिलाफ बताया।
ये था मामला
यह घटना उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मौजपुर इलाके में हुई थी, एक घर में लगी आग और आसपास के घरों में भी फैल गई और काफी सामान जल गया था। इस बारे में दिल्ली कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि घटनाएं अलग थीं या अपराध अलग थे। दिल्ली पुलिस ने एक ही अभियुक्त का नाम पांच-पांच अलग-अलग मामलों में भी दर्ज कर दिया था। इस मामले में आतिर नाम के शख़्स की ओर से याचिका दायर की गई थी। अदालत ने दिल्ली पुलिस के कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाया, ये कोई पहली बार नहीं हुआ है। हाई कोर्ट या कुछ और स्थानीय अदालतों ने, बीते एक से डेढ़ साल में लगातार दिल्ली पुलिस के कामकाज पर सवाल उठाती रही हैं।
पहले भी उठे थे सवाल
जुलाई, 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के कामकाज और उसके रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा था कि जांच को लेकर दिल्ली पुलिस उदासीन है। इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अभियुक्त के कथित कबूलनामे के लीक होने की जांच रिपोर्ट पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा था कि यह ‘आधा-अधूरा और बेकार काग़ज़ का टुकड़ा है। इस साल जून में देवांगना कालिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते हुए भी दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए पुलिस की चार्जशीट को सिरे से खारिज कर दिया था।
तीन दिन तक चले थे दंगे
बता दें कि पिछले साल 23 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली तीन दिन तक दंगे चले थे। इलाके की वाहनों और दुकानों में आग लगा दी गई थी। जाफराबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, गोकलपुरी और न्यू उस्मानपुर में दंगे में 53 लोगों की मौत हो गई थी और 581 लोग घायल हो गए थे। पुलिस ने 755 एफ़आईआर दर्ज की थीं और 1,818 लोगों को गिरफ़्तार किया था।
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