राजस्थान चुनाव: क्यों बीजेपी के करीब हैं राजस्थान के राजपरिवार?

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राजशाही भले ही खत्म हो गई हो लेकिन राजस्थान के लोगों पर वहां के राजपरिवारों का प्रभाव आज भी है। कई राजपरिवार राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं। खासकर भारतीय जनता पार्टी से। आम लोगों में एक धारणा ये है कि राजपरिवार के लोग वैसे ही समृद्ध हैं वे चुनाव जीतकर आम लोगों को भला क्यों ही लूटेंगे। यही वजह है कि ग्वालियर की राजकुमारी और धौलपुर की रानी रही वसुंधरा राजे को जनता ने दो बार सीएम बनाया। लेकिन सवाल ये कि आखिर राजपरिवार बीजेपी के इतने करीब क्यों हैं?

इसका जवाब है राजपरिवारों के दिलों की टीस। दरअसल राजपरिवार बीजेपी के इतने करीब नहीं हैं जितने वे कांग्रेस से दूर हैं। आइए समझाते हैं। जिस वक्त भारत आजाद हुआ उस समय देश के आधे हिस्से पर राजा महाराजाओं का राज था। ब्रिटिश हुकूमत इन राजा महाराजाओं को मान्यता देती थी। एक आंकड़े के मुताबिक 1947 में 560 रियासतें थीं। जिनमें देश की एक बड़ी आबादी रहती थी। कई राजाओं ने तो ब्रिटिश हुकूमत के साथ अलग अलग तरह की संधि की हुई थीं। यहां तक कि राजा महाराजाओं को उनकी हैसियत के मुताबिक तोपों की सलामी भी दी जाती थी।

अब जब देश आजाद हुआ तो इन रियासतों के पास विकल्प था कि वे भारत या पाकिस्तान में से किसी एक देश में विलय कर लें। हालांकि कुछ एक को छोड़ सभी रियासतें भारत के साथ आ गईं। देश को एकजुट करने का श्रेय सरदार वल्लभभाई पटेल को जाता है। इसलिए उन्हें भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है। धीरे धीरे ये रियासतें भारत में शामिल हुईं और फिर समय के साथ यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित हुई। हालांकि राजा महाराजाओं को भारत सरकार की ओर से प्रिवी पर्स दिया जाता था। इसके अलावा इन लोगों को कई विशेषाधिकार भी दिए गए थे।

क्या था प्रिवी पर्स?

राजा महाराजा और उनके परिवारों को एक निश्चित राशि दी जाती थी। ये राशि काफी अच्छी होती थी। जिससे उनका खर्च चल सके। यहां तक कि सरकार के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा इस काम में जाता था। ये राशि हजारों से लाखों तक में होती थी। इसे ही प्रिवी पर्स कहा जाता था।

प्रिवी पर्स और उपाधियों खत्म करने का प्रस्ताव मूल रूप से 1970 में संसद के समक्ष लाया गया था और लोकसभा में पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में आवश्यक दो-तिहाई बहुमत तक पहुंचने में एक वोट से असफल रहा।

6 सितंबर 1970 को, भारत के राष्ट्रपति ने एक संक्षिप्त आदेश पारित किया। जिसमें उन्होंने निर्देश दिया कि उनके आदेश की तारीख से, सभी शासकों को शासक के रूप में मान्यता देना बंद कर दिया जाए। इसके परिणामस्वरूप शासकों को मिलने वाले प्रिवीपर्स तत्काल समाप्त हो गये और उनके व्यक्तिगत विशेषाधिकार भी समाप्त हो गये।

कुछ शासकों द्वारा आदेशों पर सवाल उठाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने राजा महाराजाओं के पक्ष में फैसला सुनाया।
बाद में 1971 में फिर से संसद के समक्ष ये प्रस्ताव लाया गया और 1971 में भारत के संविधान में 26वें संशोधन के रूप में सफलतापूर्वक पारित किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों और सरकार के राजस्व घाटे को कम करने की आवश्यकता के आधार पर प्रिवी पर्स को खत्म किया।

प्रिवी पर्स खत्म किए जाने ने पूर्व शासकों के सभी अधिकार और विशेष स्थिति को समाप्त कर दिया, इस प्रकार वे अन्य भारतीयों के बराबर सामान्य नागरिक बन गए, उनके पूर्व शासक उपाधियों, विशेष स्थिति आदि की कोई आधिकारिक मान्यता नहीं रही।

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