Congress in Assembly Elections 2023 : 5 राज्यों के चुनावी नतीजे सामने आ चुके हैं। जिसमें सत्ता की सीरीज का मुकाबला बीजेपी जीत चुकी है। 2023 में हुए 5 राज्यों के चुनावों में बीजेपी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है। जबकि, कांग्रेस को तेलंगाना में जीत हासिल हुई है। वहीं मिजोरम में जेडपीएम की पूर्ण बहुमत की सरकार सत्ता में आ रही है। इन चुनावी नतीजों के बाद जहां एक ओर बीजेपी जीत का जश्न मना रही है, वहीं कांग्रेस पार्टी 4 राज्यों पर मिली हार को लेकर मंथन कर रही है। ऐसे में कांग्रेस की हार के कारणों पर देशभर में चर्चा चल रही है। आइए जानते हैं कांग्रेस की हार के कुछ बड़े कारण।
Congress in Assembly Elections 2023 : राजस्थान में पायलट और गहलोत की तू-तू मैं-मैं
राजस्थान विधान सभा चुनाव में मिली हार के लिए एक बड़ा कारण पूर्व सीएम और डिप्टी सीएम के बीच तनातनी को माना जा रहा है। पिछले 5 सालों में कई बार सचिन पायलट और अशोक गहलोत के मध्य विवादों की चर्चा सुर्खियों में बनी रही। लोक लुभावने वादों के बावजूद कांग्रेस राजस्थान में बहुमत के इर्द गिर्द भी ना पहुंच सकी। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इन दोनों के बीच खींचतान से कार्यकर्ताओं की मानसिकता पर बुरा असर पड़ा और जनता के बीच भी गलत संदेश पहुंचा। जहां, 2018 में कांग्रेस को चुनाव जिताने में अहम भूमिका निभाने वाले पायलट को कांग्रेस इग्नोर करती रही, वहीं, कुर्सी का मोह गहलोत ने भी नहीं छोड़ा। हालांकि, चुनाव से ठीक पहले दोनों नेता जनता के सामने कंधे से कंधा मिलाते हुए नजर आए।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के कंधों पर डाली सारी जिम्मेदारी, गुटबाजी बनी बड़ा कारण!
छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव में मिली हार के लिए एक बड़ा कारण कांग्रेस की चुनाव मैनेजमेंट को कहा जा सकता है। जहां, एग्जिट पोल में पहले कांग्रेस जीतती हुई नजर आ रही थी, वहीं नतीजे आने के बाद उसे मुंह की खानी पड़ी। जहां, कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में चुनाव की पूरी जिम्मेदारी एक व्यक्ति यानि भूपेश बघेल के कंधों पर डालना कांग्रेस को भारी पड़ा। वहीं, कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सीएम पद को लेकर टीएस सिंहदेव और बघेल के बीच खींचतान कांग्रेस की हार की वजह बनीं। बता दें, छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव 2023 में जहां बघेल को जीत हासिल हुई, वहीं सिंहदेव को अपने क्षेत्र से हार का स्वाद चखना पड़ा।
बता दें, छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 जीतने के बाद आधे-आधे समय के लिए पूर्व सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति बनी थी। लेकिन भूपेश बघेल लगातार पांच वर्षों तक सीएम की कुर्सी पर बने रहे । दोनों नेताओं के बीच इसी बात को लेकर नाराजगी रही। जिससे जनता के बीच एक गलत संदेश भी पहुंचा।
MP में कमलनाथ का नहीं खिला कमल, शिवराज की छवि पड़ी भारी
कांग्रेस में जहां एक ओर कमलनाथ अड़ियल नेता माने जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बीजेपी के सीएम शिवराज की छवि जमीनी नेता के तौर पर देखी जाती है। वे अपनी पार्टी की सुनते भी हैं और आदेशों का पालन भी करते हैं। इसलिए, शिवराज सिंह की सरल छवि कमलनाथ की छवि पर भारी पड़ी। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, जनता को भी इस बार बतौर सीएम शिवराज ही पसंद आए। उनकी लाडली बहना योजना ने उन्हें सत्ता की कुर्सी पर दोबारा बैठाया है।
इसके अलावा, सत्ता विरोधी लहर भी कांग्रेस के साथ नजर नहीं आई। कमलनाथ ने किसी यूथ लीडर को आगे आने नहीं दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी निराश होकर बीजेपी का दामन थामना पड़ा। एमपी में कांग्रेस युवा नेतृत्व नहीं दिखा पाई।
मिजोरम में भी कांग्रेस पस्त,मिली सिर्फ 1 सीट
कांग्रेस ने मिजोरम में भी अपना लक आजमाया था। कई एग्जिट पोल्स में कांग्रेस को 7-10 सीट मिलते हुए दिखाया गया था। लेकिन ताजा अपडेट के अनुसार, मिजोरम में भी कांग्रेस सस्ते में सिमट चुकी है। चुनाव आयोग ने मिजोरम विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित कर दिए हैं। जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) 27सीटें जीतकर राज्य में सरकार बनाने जा रही है। वहीं, मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) 10 सीटों के साथ सत्ता से बाहर हो गई है। वहीं, भाजपा को 2 और कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट मिली है। बता दें, कांग्रेस ने मिजोरम की सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
वहीं, एक समय पर कांग्रेस के मिजोरम में प्रदेश अध्यक्ष रहे लालदुहोमा, अब जेडपीएम पार्टी का नेतृत्व करते हुए सीएम पथ की शपथ लेंगे। लालदुहोमा जैसा चेहरा कांग्रेस खेमे में ना होना भी मिजोरम में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण माना जा रहा है।
यह भी पढ़ें :