UP Election 2022 की बयार में बह रहे सियासी दलों के नेता एक-दूसरे पर धड़ल्ले से जुबानी हमला कर रहे हैं। सियासत में भाषा की स्तरहीनता लगातार नये प्रतिमान गढ़ रही है।
सत्तापक्ष हो या विपक्ष, सभी की जुबान में वही तीखापन या पैनापन है, जिसे हम अक्सर गली-चौराहे के नुक्कड़ पर होने वाले दो-चार लोगों के वाद-विवाद में देखते हैं।
अक्सर नुक्कड़ की बहस गरम चाय के पुरवे से शुरू होती है और चाय के खत्म होने तक आक्रामक हो जाती है लेकिन जैसे ही पान का बीड़ा मुंह में जाता है पूरी बहस पर पानी फिर जाता है और वातावरण में शांति छा जाती है। नुक्कड की सभा वीरान हो जाती है।
कुछ-कुछ उसी तरह का हाल चुनावी रैलियों का भी है। अक्सर नेताओं के लच्छेदार शब्दों से सराबोर भाषण को सुनती जनता तालियां बजाती है और भाषण खत्म होते ही घर की ओर निकल लेती है।
भाषणवीर नेताओं की लंबी फौज लगभग सभी दलों में मौजूद है। इनका काम ही होता है कि मंच से कभी विवादित बोलें तो कभी चुटिले अंदाज में विपक्ष पर हमला करें।
जनता बड़े बड़े ही चाव से ऐसे भाषणों को सुनती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मंगलवार को गोरखपुर में बड़े ही चुटिले अंदाज में समाजवादी पार्टी पर हमला किया।
पीएम मोदी ने कहा लाल टोपी वालों को सरकार बनानी है आतंकवादियों पर मेहरबानी दिखाने के लिए
पीएम मोदी ने सपा या उसके प्रमुख अखिलेश यादव का नाम न लेते हुए कहा, कहा, कहा, “लाल टोपी वालों को लाल बत्ती से मतलब रहा है। लाल टोपी वालों को सत्ता चाहिए घोटालों के लिए। अपनी तिजोरी भरने के लिए। अवैध कब्ज़ों के लिए। माफ़ियाओं को खुली छूट देने के लिए। लाल टोपी वालों को सरकार बनानी है आतंकवादियों पर मेहरबानी दिखाने के लिए आतंकियों को जेल से छुड़ाने के लिए।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपनी चुनावी रैलियों में इस तरह की व्यंग भरी बातों से विपक्ष को लताड़ते रहते हैं और शायद जनता भी उनके मुंह से इन्हीं बातों को सुनने के लिए उनकी रैलियों में आती है।
लेकिन प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या लोकतंत्र के इस मेले में ऐसे भाषणों और भाषा की जरूरत है। वाद-विवाद तो जनकल्याण की बातों पर होना चाहिए लेकिन क्या ऐसा होता है।
कभी ऐसा क्यों नहीं होता कि सत्तापक्ष अपने कार्यों और उपलब्धियों को जनता के सामने रखे औऱ विपक्ष सरकार के कार्यों का आलोचनात्मक मुल्याकंन करें। लेकिन पिछले कुछ सालों से चुनावी भाषणों में मसखरे जैसी बातों का पुट कुछ ज्यादा ही दिखाई देने लगा है।
बंगाल चुनाव में भी पीएम मोदी ‘दीदी ओ दीदी’ कह चुके हैं
यूपी चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सपा पर जिस तरह से निशाना साध रहे हैं, वो उनके बंगाल के विधानसभा चुनाव के भाषण की याद दिला रहा है। बंगाल चुनावी भाषण में पीएम मोदी ने सीएम ममता बनर्जी के लिए बेहद आपत्तिजनक तरीके से ‘दीदी ओ दीदी’ कहा था। हमने देखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘दीदी ओ दीदी’ के बाद बंगाल में क्या हुआ।
अब यूपी चुनाव में भी प्रधानमंत्री मोदी जिन शब्दों में परोक्ष तरीके से अखिलेश यादव और उनकी पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। इसमें कई निहितार्थ निकल रहे हैं।
प्रधानमंत्री के भाषण से एक बात तो साफ समझी जा सकती है कि पीएम मोदी विपक्ष के तौर पर समाजवादी पार्टी को आधिकारिक वैधता प्रदान कर रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि भाजपा यूपी चुनाव में सीधे-सीधे अखिलेश यादव को बतौर विपक्ष स्वीकार कर रही है।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या पीएम मोदी के लाल टोपी कहने से भाजपा के जनाधार का दायरा बढ़ेगा या भाजपा के पक्ष में किसी तरह के वोटबैंक का निर्माण होगा क्योंकि बंगाल में तो पीएम मोदी को ‘दीदी ओ दीदी’ कहना तो भारी पड़ा था।
विपक्षी वोटों का लाल टोपी में जमावड़ा हो जाए तो क्या होगा ?
सोचिए अगर बिखरे हुए विपक्षी वोटों का लाल टोपी में जमावड़ा हो गया तो क्या यूपी में भाजपा का किला सुरक्षित रहेगा। साल 2017 के चुनाव में अखिलेश यादव की हार और भाजपा को गद्दी मिलने का पूरा श्रेय अकेले नरेंद्र मोदी को जाता है इसमें कोई शक नहीं।
लेकिन अब लगभग 5 साल के योगी शासन के बाद भी अगर पीएम मोदी को जनता के बीच लाल टोपी के खतरे की बात करनी पड़ रही है तो समझिये कि भाजपा के पास शायद 5 साल का लेखाजोखा रखने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं।
वहीं विपक्षी दल में कांग्रेस की प्रियंका गांधी यूपी में किसी करिश्में की उम्मीद कर रही हैं तो मायावती बसपा के बिखरे हुए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को फिर से दुरूस्त करने में लगी हुई है। कुल मिलाकर 2017 में गद्दी खो चुके अखिलेश पूरे मनोयोग से फिर उम्मीद लगाये बैठे हैं कि जनता उनपर फिर भरोसा जताएगी।
इसके लिए उन्होंने पश्चिमि यूपी में राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया है। वहीं पूर्वी यूपी में सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर अखिलेश यादव को सीएम बनाने के लिए दिनरात एक किये हुए हैं।
योगी आदित्यनाथ ने पीएमओ के पैराशूट से उतरे हुए अरविंद शर्मा को भाव नहीं दिया
ऐसे में स्वयं पीएम मोदी अगर जनता से यह कह रहे हैं कि लाल टोपी से बच कर रहो तो समझिये कि लाल टोपी से जनता को नहीं बल्कि खुद भाजपा को बड़ा खतरा नजर आ रहा है। सत्ता के समीकरण में योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से पीएम मोदी के चहेते और पीएमओ से सीधे भेजे गये अरविंद शर्मा को पास नहीं फटकने दिया।
साल 2017 में भाजपा को यूपी में जीत दिलवाने वाले केशव प्रसाद मौर्य के साथ योगी आदित्यानाथ ने जो व्यवहार किया, उससे साफ पता चलता है कि यूपी भाजपा में तगड़ी खेमेबंदी चल रही है यानी की अगर भाजपा के हाथ से सत्ता फिसलती है तो विपक्ष उसका मुख्य कारण नहीं होगा। उसका मुख्य कारण असल में प्रदेश भाजपा का आपसी टशन होगा।
वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अतीत को देखें तो साल 2015 के बिहार चुनाव में विरोधी खेमें में रहे नीतीश कुमार के ‘डीएनए’ की बात करना भी उन्हें भारी पड़ा था, जब तत्कालीन महागठबंधन ने बिहार से भाजपा का सूपड़ा ही साफ कर दिया था। उसके बाद बंगाल चुनाव में भी हमने भाजपा का हाल देख ही लिया।
पीएम मोदी ने अक्सर क्षेत्रिय दलों की अस्मीता का अपमान किया
अब यूपी चुनाव में लाल टोपी पीएम मोदी को किस तरह का परिणाम देती है यह तो भविष्य की गर्त में छुपा हुआ प्रश्न है लेकिन एक बात तो साफ है कि क्षेत्रिय दलों की अस्मिता का पीएम मोदी ने जब-जब अपमान किया भाजपा को हार का मुंह देखने पड़ा है।
यूपी चुनाव 2022 योगी आदित्यनाथ के लिए उतना भारी नहीं है जितना कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मदी के लिए क्योंकि 2024 में संसद पर कब्जे की राह यहीं से बनने वाली है। अगर किसी कारण से भाजपा को यूपी में अखिलेश यादव के कारण सत्ता का नुकसान उठाना पड़ा तो यह बात भी तय हो जाएगी कि 2024 के लोकसभा के चुनाव में अखिलेश यादव प्रमुख भूमिका में आ सकते हैं क्योंकि यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं और यूपी ही देश के राजनीति की दिशा और दश तय करती है।
(डिस्क्लेमर :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति APN न्यूज उत्तरदायी नहीं है)
(लेखक आशीष पाण्डेय जाने-माने पत्रकार हैं, पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। राजनीति और अन्य सामाजिक मुद्दों पर लिखते रहे हैं)
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