देवभूमि Uttarakhand मना रहा 23 वां स्‍थापना दिवस, जानिए राज्‍य से जुड़ी दिलचस्‍प बातें

Uttarakhand:आज यानी 9 नवंबर 2000 के दिन ही उत्‍तर प्रदेश से अलग होकर 27वें राज्‍य के रूप में अस्तित्‍व में नया राज्‍य देश के नक्‍शे में उभरा था।

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Uttarakhand: हिमालय की बर्फ से भरी सुंदर वादियां, रंगीले कुमाऊ और छबीले गढ़वाल के रंग, भट की दाल, डुबके और झोई। इनका जिक्र आते ही आंखों के आगे जिस जगह का नाम आता है वह है उत्‍तराखंड-देवभूमि।आज उत्‍तराखंड अपनी स्‍थापना के 23 वर्ष पूरे कर चुका है। आज यानी 9 नवंबर 2000 के दिन ही उत्‍तर प्रदेश से अलग होकर 27वें राज्‍य के रूप में अस्तित्‍व में नया राज्‍य देश के नक्‍शे में उभरा था। इन 23 वर्षों के दौरान राज्‍य के लोगों ने बहुत कुछ हासिल किया और कुछ खोया भी।उत्‍तराखंड की स्‍थापना दिवस के मौके पर जानते हैं इस राज्‍य से जुड़ी दिलचस्‍प बातें यहां।

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Uttarakhand: कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा का है बोलबाला

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बात अगर यहां की भाषा की करें तो ज्यादातर कुमाऊंनी और गढ़वाली बोली जाती है। ‘कुमाऊं’ बोली की ही उप बोलियां हैं जोहरी, दानपुरिया, अस्कोटी, सिराली, गंगोला, सोरयाली, चौघरख्याली और माझ कुमैया। वहीं गढ़वाली बोली की उप बोलियां हैं जौनसारी, सैलानी और मर्ची। उत्तराखंड की मुख्य बोलियां संस्कृत और केंद्रीय पहाड़ी से प्रभावित हैं और ये बोलियां देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।

Uttarakhand: जानिए राजधानी देहरादून के नाम के पीछे की कहानी

वर्तमान में उत्‍तराखंड की राजधानी देहरादून है। इसके नाम के पीछे भी एक रोचक कहानी है।सिखों के साथ में गुरु हरि राय के बेटे गुरु राम राय ने 1675 ईसवी में देहरादून में आकर डेरा डाला था।तभी से इसे डेरा या देहरा कहा जाने लगा। पहाड़ के बीच बसी इस घाटी के चलते दून इसमें जोड़ दिया गया, तभी से इसे देहरादून कहा जाने लगा।

जानकारों की मानें तो महाभारत काल से जुड़े भी कुछ अतीत के निशान देहरादून में मिलते हैं। कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने देहरादून की प्राचीन टपकेश्वर की गुफाओं में तपस्या की थी। जिसके बाद इसे द्रोणनगरी भी कहा जाने लगा। कई वर्षों तक गुरु द्रोणाचार्य ने यहां तप किया।अपनी स्वर्ग की यात्रा के दौरान पांडव कुछ वक्त के लिए यहां रूके थे।
वहीं ब्रिटिशर जीआरसी विलियम्स ने मेमोयर्स ऑफ दून में देहरादून के रामायण काल से जुड़े भी कुछ तथ्य बताए गए हैं। बताया जाता है कि जब भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। उसके बाद लक्ष्मण के साथ वह देहरादून के ऋषिकेश क्षेत्र में आए थे और गंगा में स्नान किया था।

Uttarakhand: देवभूमि में स्थित हैं चार धाम

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आपको पता होगा कि देश में चारधाम हैं, लेकिन आपको ये पता नहीं होगा कि उत्‍तराखंड में भी चार धाम स्थित हैं। ये धाम हैं केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री। जहां हर वर्ष लाखों की तादाद में तीर्थयात्री पहुंचते हैं।
केदारनाथ धाम: केदारनाथ धाम उत्‍तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है। ऐसी मान्‍यता है कि यहां भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हुए थे। उन्होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं। केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी तट पर स्थित है।

बदरीनाथ धाम: अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बदरीनाथ धाम उत्‍तराखंड के चमोली जनपद में स्थित है। बदरीनाथ मंदिर को बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं।इस मंदिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है। यहां अखंड दीप जलता है, जो अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। मान्‍यता है कि यहां भगवान विष्णु छह माह निद्रा में रहते हैं और छह माह जागते हैं।

गंगोत्री धाम: भागीरथी नदी के तट पर स्थित गंगोत्री धाम उत्‍तराखंड के उत्‍तरकाशी जनपद में स्थित है। यहां से गंगा का उद्गम स्रोत करीब 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में है।मान्‍यता है कि भगवान राम के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहीं पर भगवान शंकर की तपस्या की थी। इसके बाद भी गंगा पृथ्वी पर आईं।

यमुनोत्री धाम: यमुनोत्री धाम उत्‍तराखंड के उत्‍तरकाशी जनपद में स्थित है। ऐसी मान्‍यता है कि चार धाम यात्रा की शुरुआत इस स्थान से होती है। यह चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव है। यमुनोत्री मंदिर के मुख्य गृह में मां यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति है। यमुना नदी सूर्य देव की पुत्री हैं और यम देवता की बहन हैं।

Uttrakhand: आइए जानें यहां के फेमस टूरिस्‍ट डेस्टिनेशन

Uttrakhand: नैनीताल हमेशा से ही अपनी सुंदरता के लिए लोकप्रिय रहा है। यहां लाखों लोग दुनियाभर से छुट्टियां बिताने पहुंचते हैं। यात्रियों के लिए यहां कई स्पॉट आकर्षण का केंद्र होते हैं।बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि आम के आकार की नैनी झील प्राचीन काल में महर्षि अत्रि, पुलस्त्य और पुलह की तपस्‍थली थी। जानकारी के अनुसार मानसरोवर से जल लाकर एक सरोवर का निर्माण किया था। जिसे ऋषि सरोवर कहा जाता था और आज उसी सरोवर को नैनी झील के नाम से जाना जाता है।

अल्मोड़ा- उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा जितनी दिखने में खूबसूरत है, उतनी यहां की धरोहरें। अल्मोड़ा कभी चंद वंश राजाओं की राजधानी हुआ करता था और उनसे संबंधित आज भी कई ऐतिहासिक धरोहर यहां देखने को मिलते हैं। ताम्रपत्र उनमें से एक हैं।ये दरअसल तांबे की चादर का वह टुकड़ा होता है। जिस पर प्राचीन काल में अक्षर खुदवाकर दानपत्र या प्रशस्ति-पत्र आदि लिखे जाते थे, वह ताम्रपत्र कहलाता था। यहां के प्रसिद्ध लाला बाजार, आकाशवाणी केंद्र, बिनसर के जंगल, चितई गोल्‍ज्‍यू मंदिर, गैराड़ गोलूदेव मंदिर, कसार देवी और शिवजी का प्रसिद्ध मंदिर जागेश्‍वर भी यहां स्थित है।

बागेश्‍वर –सरयू एवं गोमती नदी के संगम स्थल पर बसे बागेश्‍वर की वादियां बेहद खूबसूरत हैं।बागनाथ मंदिर बागेश्वर शहर के ठीक बीच में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कुमाऊं के राजा लक्ष्मी चंद ने 1450 ईस्वी में करवाया था। भगवान शिव ने बाघ के रूप में मार्कंडेय नाम के ऋषि को आशीर्वाद दिया था। इस बागेश्वर बागनाथ मंदिर में अक्सर श्रद्धालुओं आते जाते रहते हैं।बैजनाथ मंदिर बागेश्वर का प्रसिद्ध एक भगवान शिव के लिए जाना जाने वाला मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण तकरीबन 15 वीं शताब्दी में हुआ था।चंद्रिका मंदिर में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। यहां के लोगों का मां चंद्रिका के प्रति काफी श्रद्धा एवं विश्वास है।

Uttarakhand: आइए जानें गढ़वाल के फेमस टूरिस्‍ट डेस्टिनेशन

पौड़ी जिले में स्थित देवी काली को समर्पित इस मंदिर की मान्‍यता दूर-दूर तक है।लोगों का मानना है कि यहां धारी माता की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं पहले एक लड़की फिर महिला और अंत में बूढ़ी महिला ।

एक पौराणिक कथन के अनुसार कि एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी। गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनाई सुनी और पवित्र आवाज़ ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया।

पौड़ी स्थित श्री कोटेश्‍वर महादेव मंदिरलगभग 1428 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर में निसंतान जोड़ों के बीच बहुत प्रसिद्ध है।मंदिर में एक शिवलिंग है जो पूर्व में हिमालय पर्वतमाला, पश्चिम में हरिद्वार और दक्षिण में सिद्ध पीठ मेदानपुरी देवी मंदिर से घिरा हुआ है।

लैंसडाउन कभी कालडूंडा के नाम से प्रसिद्ध लैंसडाउन एक मशहूर टूरिस्ट प्‍लेस है।गढ़वाली भाषा में कालडूंडा का मतलब काला पत्थर होता है। इसके बाद 1857 में भारत से तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड लैंसडाउन के नाम पर इस शहर का नाम लैंसडाउन पड़ गया। अगली बार जब भी आप लैंसडाउन घूमने का प्लान बनाएं तो लैंसडाउन की सबसे खूबसूरत जगहों को एक्सप्लोर करें।

टिहरी डैम- गढ़वाल में टिहरी डैम देखने लायक है। ह बांध पहाड़ों से आती भागीरथी नदी और भीलांगना नदी पर बनाया है। टिहरी बांध की ऊंचाई 261 मीटर है, जो विश्व का पांचवा सबसे ऊंचा बांध है। इस बांध के पानी का इस्तेमाल बिजली उत्पादन में किया जाता है। लेकिन समय के साथ-साथ इस बांध की खूबसूरती ने टिहरी को नई पहचान दी है। पर्यटन के लिहाज से यह बांध काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी यहां तक का सफर तय करते हैं। बता दें कि आज जहां यह बांध है वहां टिहरी शहर हुआ करता था जिसे अब ऊपर पहाड़ी पर न्यू टिहरी के नाम से बसाया गया है। यह टिहरी इलाका देखने में काफी सुंदर है, चीड़-देवदार के जंगल इसे खास बनाने का काम करते हैं। टिहरी झील अब वाटर एडवेंचर के लिए भी जानी जाती है।

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