Maharashtra News: मुंबई की सड़के जलमग्न…सड़को पर भरा पानी…पानी मे टूटी हुई लकड़ी पर बैठे Ganpati Bappa

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Maharashtra News:हर साल मुंबई (Mumbai) के परेल (Parel)में बारिश (Rain) की वजह से जल-जमाव की परेशानी से लोगों को जूझना पड़ता है। इस बार उसी परेशनी को देखते हुए गणपती बप्पा (Ganpati Bappa) की मूर्ति बनाई गई है। मुंबई के परेल परिसर में हर साल बारिश से सड़के जलमग्न (Roads Submerged) हो जाती है। बारिश से पहले हर साल बीएमसी नाले की सफाई में करोड़ो रुपये खर्च करती है फिर भी हालत जैसे के तैसे ही रहते है। कुछ ऐसे ही दृश्य को लेकर मुंबई के प्रतीक्षा नगर में इस बार गणेश मूर्ति का पंडाल सजाया गया है। जिसमें भारी बारिश से लोगों को हो रही परेशानियों को दर्शाने का प्रयास किया गया है।

हर साल की तरह इस बार भी गणेश उत्सव (Ganeshotsav) आया का त्यौहार आया है। इस बार भी मुंबई के परेल की सड़के जलमग्न हो गई है। गणेश भक्तों के दिलों में तो उत्साह अपार है लेकिन सड़कों पर यह उत्साह पिछले साल की तरह इस साल भी दिखाई नहीं दे पाएगा।

कोविड-19 के चलते, गणेशोत्सव के दौरान लोगों को पंडाल में जाने की अनुमति नहीं

बता दें कि इस बार मुंबई में के पंडालों में दर्शन की अनुमति नहीं है। यहां धारा 144 लागू कर दी गई है। साथ ही जुलूस निकालने पर भी रोक लगाई गई है। सूबे की सरकार कहना है कि कोविड-19 महामारी के चलते, गणेशोत्सव के दौरान लोगों को पंडाल में जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। राज्य के गृह विभाग की ओर से कहा गया कि पंडाल से केवल ऑनलाइन दर्शन की अनुमति दी जाएगी। बीएमसी ने घर में स्थापित किए जाने वाले गणपति की मूर्तियों की ऊंचाई दो फुट जबकि सार्वजनिक मंडलों के लिए चार फुट तक सीमित कर दी है।

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2कब से हुई गणेश चतुर्थी पूजा की शुरूआत

गणेश चतुर्थी पूजा की शुरूआत की सही तारीख किसी को शायद पता नहीं है, हालांकि इतिहास के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि गणेश चतुर्थी 1630-1680 के दौरान छत्रपति शिवाजी (मराठा साम्राज्य के संस्थापक) के समय में एक सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया जाता था। शिवाजी के समय, यह गणेशोत्सव उनके साम्राज्य के कुलदेवता के रूप में नियमित रूप से मनाना शुरू किया गया था। पेशवाओं के अंत के बाद, यह एक पारिवारिक उत्सव बना रहा, यह 1893 में बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक की ओर से इसे पुनर्जीवित किया गया।

गणेश चतुर्थी एक बड़ी तैयारी के साथ एक वार्षिक घरेलू त्यौहार के रूप में हिंदू लोगों की ओर से मनाना शुरू किया गया था। सामान्यतः यह ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच संघर्ष को हटाने के साथ ही लोगों के बीच एकता लाने के लिए एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना आरंभ किया गया था।

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