Gama Pehalwan: कुश्‍ती जगत में ऐसा नाम, जिसके आते ही तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता था स्‍टेडियम, Gama पहलवान, गूगल ने डूडल बनाकर 144 वीं जयंती पर दिया सम्‍मान

Gama Pehalwan: गामा पहलवान पहली बार दुनिया की नजर में आए, तब उनकी उम्र केवल 10 बरस थी. यह साल था 1888 का। तब जोधपुर में सबसे ताकतवर शख्स की खोज के लिए एक प्रतियोगिता हुई थी। इसमें 400 से अधिक पहलवानों ने हिस्सा लिया था और गामा अंतिम 15 में शामिल थे।

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Gama Pehalwan: देश और दुनिया में कुश्‍ती सम्राट के नाम से मशहूर द ग्रेट गामा या गामा पहलवान का आज 144वां जन्मदिन है। कुश्ती की दुनिया में गामा पहलवान का कद कितना बड़ा था। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जन्मदिन के मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया है। 22 मई, 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव में जन्‍मे गामा पहलवान का नाम ही कुश्‍ती जगत में काफी था। एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार से आने वाले गामा पहलवान और उनके पिता मुहम्मद अजीज बक्श दतिया के तत्कालीन महाराजा भवानी सिंह के दरबार में कुश्ती लड़ा करते थे।

जब गामा पहलवान मात्र 6 वर्ष के थे, उनके पिता का देहांत हो गया था, लेकिन तब तक उनके पहलवानी का सफर शुरू हो चुका था। गामा पहलवान के नाना नून पहलवान ने उन्हें और उनके भाई को कुश्ती के दांव-पेंच सिखाने की जिम्मेदारी उठाई। इसके बाद मामा ईदा पहलवान ने भी गामा और उनके भाई को तराशा।

गामा पहलवान पहली बार दुनिया की नजर में आए, तब उनकी उम्र केवल 10 बरस थी. यह साल था 1888 का। तब जोधपुर में सबसे ताकतवर शख्स की खोज के लिए एक प्रतियोगिता हुई थी।

इसमें 400 से अधिक पहलवानों ने हिस्सा लिया था और गामा अंतिम 15 में शामिल थे।इस प्रतियोगिता में जोधपुर के महाराज इतनी कम उम्र में गामा की ताकत देखकर हैरान रह गए थे।उन्होंने गामा को विजेता घोषित कर दिया। इसके बाद पिता की तरह गामा भी दतिया महाराज के दरबार में पहलवानी करने लगे।

Gama Pehalwan: एक दिन में 40 पहलवानों के साथ करते थे जोर-आजमाइश

बड़ी कम उम्र में ही गामा का नाम हर जगह गूंजने लगा। वे प्रतिदिन करीब 10 घंटे से ज्यादा समय अपनी प्रैक्टिस करने में गुजारते थे। दमखम बढ़ाने के लिए अखाड़े में एक दिन में 40 पहलवानों से कुश्ती लड़ते थे। सबसे हैरानी की बात ये है कि वे हर दिन 5 हजार बैठक और 3 हजार दंड किया करते थे।

कभी-कभी 30 से 45 मिनट तक एक डोनट के आकार का उपकरण पहनकर, वो अभ्‍यास करते थे, जिसका वजन 100 किलो था। अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए रोजाना 6 देसी चिकन, 10 लीटर दूध, आधा लीटर घी, डेढ़ लीटर मक्खन, बादाम का शरबत और 100 रोटी खाया करते थे।

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Gama Pehalwan: बेहद रोमांचक रहा है गामा का करियर

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गामा पहलवान (Gama Pehalwan) का सिक्‍का उनके पांच दशक के पहलवानी के करियर में बना रहा।करीब 10 साल की उम्र से अखाड़े में पैर रखने के बाद उन्‍होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।उन्होंने सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में लोगों को कुश्‍ती के लिए प्रेरित किया। इसमें ब्रूस ली जैसे दिग्गज के नाम भी शामिल हैं।

सन1910 में वे लंदन गए थे. तब गामा ने खुली चुनौती दी थी, कि वे किसी भी वेट कैटेगरी के तीन पहलवानों को महज 30 मिनट में धूल चटा देंगे। उनकी इस चुनौती को बाकी पहलवानों ने हल्के में लिया, लेकिन काफी समय तक किसी ने गामा पहलवान की चुनौती स्वीकार नहीं की।

ऐसे में गामा ने हैवीवेट पहलवानों को चुनौती दी। उन्होंने विश्व चैंपियन स्टैनिस्लॉस जैविस्को, फ्रैंक गॉच को चुनौती दी या तो वह उन्हें हरा देंगे या ईनाम में जो राशि मिलेगी वे उन्हें देकर घर लौट जाएंगे। गामा की चुनौती लेने वाले पहले पहलवान अमेपिका के बेंजामिन रोलर थे।

गामा ने पहली बार में रोलर को 1 मिनट 40 सेकेंड में चित कर दिया और दूसरे को 9 मिनट 10 सेकेंड में। दूसरे दिन उन्होंने 12 और पहलवानों को हराया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारत लौटे तो 5 फीट 8 इंच के कद वाले गामा पहलवान रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाजे गए।

Gama Pehlawan: गामा पहलवान ने जिंदगी के शेष दिन पाकिस्तान के लाहौर में बिताए

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Gama Pehalwan: उन्होंने अपनी जिंदगी के शेष दिन पाकिस्तान के लाहौर में बिताए।गामा ने अपने करियर में बहुत नाम कमाया। कई खिताब भी जीते। जिसमें 1910 में विश्व हैवीवेट चैम्पियनशिप के भारतीय संस्करण और 1927 में विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप शामिल हैं।सन 1947 में विभाजन के दौरान, गामा ने कई हिंदुओं की जान बचाई थी।

विभाजन के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी के शेष दिन पाकिस्तान के लाहौर में बिताए।विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के बाद उन्हें “टाइगर” की उपाधि से नवाजा गया। प्रिंस ऑफ वेल्स ने अपनी भारत यात्रा के दौरान महान पहलवान को सम्मानित करने के लिए एक चांदी की गदा भेंट की।

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