Pradosh Vrat: 14 अप्रैल को रखा जाएगा प्रदोष व्रत, जानें इस व्रत का महत्व और कथा

Pradosh Vrat: दिन के अनुसार प्रदोष व्रत के नाम भी बदल जाते हैं। इस महीने प्रदोष व्रत गुरूवार को पड़ा रहा है जिसकी वजह से इसे गुरू प्रदोष व्रत कहा जा रहा है। इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

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Pradosh Vrat
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Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत महीने में दो बार रखा जाता है। यह व्रत महादेव यानी भगवान शिव को समर्पित होता है। इसको सप्ताह के अलग-अलग दिन के अनुसार अलग-अलग नाम दिया जाता है। जैसे इस साल प्रदोष व्रत 14 अप्रैल यानी गुरुवार को पड़ रहा है। इसलिए इसे गुरु प्रदोष कहा जा रहा है। भगवान शिव को प्रदोष का व्रत बेहद पसंद है इसलिए जो भी यह व्रत पूरी श्रद्धा से करते हैं उन्हें महादेव का आशीर्वाद जरूर मिलता है।

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Pradosh Vrat: शुभ मुहूर्त

Pradosh Vrat: त्रियोदशी तिथि 14 अप्रैल को सुबह 4.49 से 15 अप्रैल सुबह 3.55 तक रहेगी। इस व्रत में पूजा शाम को की जाती है इसलिए इसका शुभ मुहूर्त 14 अप्रैल की शाम 6.42 से रात 9.02 मिनट तक रहेगा।

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Pradosh Vrat: पूजा विधि

  • इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
  • शाम को पूजा करने से पहले एक बार अवश्य दोबारा स्नान करना चाहिए।
  • इसके बाद मंदिर को साफ-सुथरा करें।
  • अब शिवलिंग या शिव की मूर्ति पर दूध, दही, शहद, गंगाजल और घी आदि से अभिषेक करें।
  • इसके बाद धूप, दीप, नौवेद्य आदि जलाकर मंत्रों को जाप करें।
  • इसके बाद फूल और प्रसाद समर्पित करें।
  • प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
  • अब भगवान शिव का पाठ करें और फिर आरती गाकर पूजा संपन्न करें।
  • अंत में भगवान से क्षमायाचना मांग कर आशीर्वाद लें।
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Pradosh Vrat: कथा

Pradosh Vrat: प्राचीन समय की बात है, एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोजाना संध्या तक भिक्षा मांगने जाती था। हमेशा की तरह एक दिन वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है?

दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था जो विदर्भ देश का राजकुमार था। उस बालक के पिता यानी विदर्भ देश के राजा को दुश्मनों ने युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया था। पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता का भी देहांत हो गया जिसके बाद शत्रुओं ने धर्मगुप्त को भी राज्य से बाहर कर दिया। बालक की हालत देख ब्राह्मणी को उस पर दया आ गई और उसने धर्मगुप्त को अपना लिया।

कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई वहां उसकी मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के बारे में सबकुछ बताया, सब जानकर ब्राह्मणी बहुत उदास हो गई। उस समय ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और इसके पूरे विधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत का फल जानें बिना भी पूरी श्रद्धा से वर्त को संपन्न किया।

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Pradosh Vrat: कुछ दिनों बाद राजकुमार धर्मगुप्त जंगल में घूम रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं दिखी वे सब बेहद सुन्दर थीं। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए। कुछ समय बाद राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। कन्या ने राजकुमार को विवाह के लिए अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया, कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा पाकर दोनों का विवाह कर दिया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त की जिंदगी पहले जैसी होने लगी। उसने संघर्ष के बाद दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया और राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य भी प्राप्त कर लिया।

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