Maharashtra Politics: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को जेपी नड्डा का भी नहीं मिला भरोसा !

Maharashtra Politics: जोड़ तोड़ कर गठित की गई महाराष्ट्र सरकार के एक साल पूरे होने को हैं। लेकिन सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार पर गंभीर चुप्पी बनी हुई है।

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Maharashtra Politics: जोड़ तोड़ कर गठित की गई महाराष्ट्र सरकार के एक साल पूरे होने को हैं। लेकिन सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार पर गंभीर चुप्पी बनी हुई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बिखराव के साथ 40 विधायकों को लेकर बीजेपी के समर्थन से सरकार बना तो ली है, लेकिन अपने ही विधायकों से किए गए वायदे को पूरा नहीं कर पा रहे हैं जिससे विधायको के एक दल में असमंजस की स्थिती बनी हुई है। आपको ये जरूर याद होगा कि महाराष्ट्र में मौजूदा राजनीति की उठापठक की शुरुआत 20 जून 2022 से हुई थी, जब विधान परिषद की 10 सीटों में से 5 सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की। शिवसेना में विरोध शुरु हो गया था कि महाराष्ट्र विकास अघाडी में रहना शिवसेना के लिए नुकसान का सौदा रहा है। इस गठबंधन से निकलने के लिए आपस में आवाज उठनी शुरु हो गई थी, जिसका नेतृत्व एकनाथ शिंदे ने किया।

रिसॉर्ट राजनीति को अंजाम देते हुए एकनाथ शिंदे 30 जून 2022 को महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री बने। एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन मंत्रीमंडल का गठन होने में तकरीबन 45 दिनों का समय लगा। दोनों दलों से कुल 20 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। लेकिन मंत्रीमंडल में अन्य विधायकों को शामिल करने का आश्वासन एकनाथ शिंदे पहले ही अपने कुछ विधायकों को दे चुके थे, लिहाजा पिछले तकरीबन छह महीने से अधिक समय से दबाव झेल रहे हैं।

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Maharashtra Politics: अमित शाह और प्रधानमंत्री ने भी मंत्रीमंडल विस्तार के लिए कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई

एकनाथ शिंदे बीजेपी के हर शीर्ष नेता के साथ अपने अच्छे सामंज्सय को बनाए रखने की कोशिश में हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से गिरीश बापट के निधन पर महाराष्ट्र आने पर हुई मुलाकात के दौरान आई तस्वीरें तो जरूर आपके ध्यान में होगीं जिसमें एक नाथ शिंदे राजनाथ सिंह को झुक कर नमन करते हैं। इस मामले को शिवसेना ठाकरे गुट ने भरपूर तूल दिया। शिवसेना ठाकरे गुट की तरफ संजय राउत सहित मनिषा कायंदे ने साफ तौर पर कहा था कि –“ शिंदे दिल्ली के सामने झुक गया है, महज मुख्यमंत्री पद पर कायम रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार है”। ये तब हुआ जब अत्यधिक दबाव झेलने के बाद अलग अलग उपाय से बीजेपी के प्रति अपनी वफादारी जाहिर करने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल सका। हालांकि इसके पहले जब भी प्रधानमंत्री का दौरा हो, तो प्रटोकॉल के अलावा बढ़चढ़ कर आगवानी करते रहे। गृहमंत्री अमित शाह का आधिकारिक दौरा हो या व्यखु उसमें भी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मौजूद रहे हैं,लेकिन इससे कोई नतीजा नहीं निकल सका। शिंदे की बात तो सुनी गई लेकिन उसपर कोई फैसला नहीं लिया गया। एकनाथ शिंदे दल के नेताओं को आश्वासन मुख्यमंत्री की तरफ से मिला कि जल्द ही इस पर फैसला हो जाएगा, मतलब एक और नई तारीख।

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शिंदे की अयोध्या यात्रा महज विधायकों को शांत करने की कोशिश थी..

महाराष्ट्र से अयोध्या की यात्रा के लिए करोडो रुपए एकनाथ शिंदे सरकार की तरफ से बहाए गए। एकनाथ शिंदे अपने विधाय़कों के साथ महाराष्ट्र कैबिनेट के मंत्री और सैकडो हजारो कार्यकर्ता के साथ अयोध्या की यात्रा 9 अप्रैल को की थी । तकरीबन 5 चार्टर फ्लाइट और 6 कमर्शियल फ्लाइट की बुकिंग एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से किया गया था। मुबई के ठाणे और कई अन्य इलाकों से कार्यकर्ता एवं पदाधिकारियों को अयोध्या जाने के लिए ट्रेनों की बुकिंग की गई थी। इस अयोध्या यात्रा पर मुख्यमंत्री के विरोधी दल का मानना था कि “ ये अयोध्या दर्शन करने जा रहे हैं या हमले की तैयारी में चलो अयोध्या का नारा देकर लोगों को ले जाने की कोशिश कर रहे हैं, कहीं अपने ही विधायकों को बहलाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं”। हकीकत था भी यही बार बार विधायकों के कहे जाने के बाद मंत्रीमंडल का विस्तार नहीं होने की स्थिती में विधायकों की परेड कराने की मंशा और शिवसेना शिंदे गुट के जरिए अपना शक्ति प्रदर्शन करने का ये हथकंडा ही साबित हुआ। महाराष्ट्र बीजेपी के वरिष्ठ सदस्य के जरिए कहा गया कि “ इससे हमारा कोई नुकसान तो नहीं है, उपर से लाभ ही है कि हिन्दूत्व के झंडे को महाराष्ट्र में भी बल मिलेगा, इसके साथ शिवसेना और महविकास अघाडी दल छोड कर आए लोगों को वफादारी साबित करने का मौका। मंत्रीमंडल विस्तार का फैसला तो बीजेपी ही लेगी लेकिन अपनी सहुलियत के मुताबिक”।

नाराज शिंदे चले गए थे एकांतवास के लिए ..

पिछले दिनों भरपूर चर्चा रही कि मुख्यमंत्री अवकाश पर चले गए हैं। अप्रैल के अंतिम सप्ताह में एकनाथ शिंदे अचानक से अपने गांव चले गए थे। विपक्ष के जरिए जोरदार बयानों की बाढ आने लगी कि अब जल्द ही बडा उलटफेर होगा , यानि बीजेपी अपनी सही चेहरे को दिखाएगी, मुख्यमंत्री दबाव में हैं। इस तरह के बयानों का जबाव शिदें की तरफ से था कि वो अवकाश पर नहीं हैं ब्लकि डबल ड्यूटी पर हैं। शिंदे इस दौरान नागपुर का भी चक्कर लगा चुके थे अंदेशा था कि कुछ वहाँ से जरूर सकारत्मक संदेश मिलेंगे । लेकिन मामला उदालत में उलझे होने से कोई रास्ता निकालना मुश्किल था। लिहाजा एक बार फिर सभी बातों को दरकिनार करके वापस लौटना ही मुनासिब लगा।

Maharashtra Politics: बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से नही मिला आश्वासन

वैसे तो बीजेपी के किसी शीर्ष नेता के लिए कई बार बगैर प्रोटोकॉल के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मिलते रहे हैं। लेकिन वीजेपी अध्यक्ष के मुबई आगमन की इस बार के कार्य़क्रम में थोडी दूरी बनी रही। हालाकि देवनार इलाके में छत्रपति शिवाजी महाराज के मूर्ति के अनावरण का एक सरकारी कार्यक्रम जरूर था। लेकिन मंत्रीमंडल विस्तार का अपने विधायकों के दबाव को झेल रहे मुख्यमंत्री एकनाथ शिदे इस कार्यक्रम में नहीं शामिल हुए। बीजेपी अधयक्ष औपचारिक मुलाकात के लिहाज से जरूर मुख्यमंत्री आवास वर्षा बंगले पर पहुँचे। लेकिन वहाँ भी बात पर कोई चर्चा नहीं हुई। अगामी मनपा चुनाव पर एक चर्चा जरूर हुई लेकिन मुख्यमंत्री की परेशानी दूर नहीं हुई है।

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हालाकि शिवसेना ठाकरे गुट के दायर सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई अब बडी बेंच कर रहा है, लेकिन कुछ हद तक मामले साफ हो गए हैं कि सरकार पर कोई संकट के बादल नहीं है। फिर भी बीजेपी सरकार के मंत्रीमंडल विस्तार पर कोई फैसला नहीं लेकर शायद एकनाथ शिंदे को ये बताने की कोशिश कर रही है कि एकनाथ शिंदे केवल एक माध्यम भर हैं महाराष्ट्र में सत्ता पाने के लिए , होगा वही जो बीजेपी के मन में होगा । एकनाथ शिंदे के सामने मजबूरी है कि वो फिर से अपने पुराने साथियो के पास जा नहीं सकते और अकेले अपने दल बल के साथ अलग रहेंगे तो कई केन्द्रीय जाँच एजेन्सियों के निशाने पर हैं कई विधायक जो एक नई मुसीबत हो सकती है। लिहजा जो है वही स्वीकार कर साथ साथ चलते रहने की उसूल पर अमल कर रहे हैं एक नाथ शिंदे।

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