SC ने पश्चिम बंगाल में ‘द केरला स्टोरी’ पर बैन को हटाया, कहा- फिल्म बैन करने लगे तो लोग सिर्फ कार्टून या खेल ही देख पाएंगे

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The Kerala Story
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फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर दायर विभिन्न याचिकाओं पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में फ़िल्म बैन के खिलाफ फिल्म प्रोड्यूसर विपुल शाह की याचिका और पत्रकार कुर्बान अली की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई की। कुर्बान अली की याचिका में फिल्म पर पूरे देश में बैन लगाने की मांग की गई है। जबकि फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार करने के केरल हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। मामले पर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह अनुच्छेद 14 और 19 से जुड़ा मसला है।

वहीं विपुल शाह की ओर से वकील हरीश साल्वे ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रतिबंध लगाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया है। साल्वे ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से जारी किए गए नोटिफिकेशन में कानून व्यवस्था खराब होने और हिंसा की आशंका को लेकर प्रतिबंध लगाने की बात कही है। साथ ही इंटेलिजेंस रिपोर्ट का हवाला देकर प्रतिबंध लगाया गया। प्रतिबंध के लिए सोशल मीडिया में नफरत को लेकर संदेशों को भी आधार बनाया गया। साल्वे ने कहा कि 13 लोगों से बयान लिए गए और यह करार दे दिया गया कि य़ह फिल्म अगर पर्दे पर दिखाई गई तो दंगे हो सकते हैं।

पश्चिम बंगाल सरकार ने महाराष्ट्र में हिंसा की बात कही है । जबकि महाराष्ट्र से किसी ने बैन लगाने की मांग नहीं की है। साल्वे ने बैन के पीछे पश्चिम बंगाल की सफाई पर सवाल खड़ा करते हुए कहा यह दिलचस्प है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने महाराष्ट्र हिंसा का जिक्र करते हुए रोक लगाई जबकि महाराष्ट्र ने खुद फ़िल्म पर कोई बैन नहीं लगाया है। बंगाल सरकार को महाराष्ट्र की ज़्यादा चिंता है।

वहीं तमिलनाडु में फिल्म पर डिफैक्टो प्रतिबंध लगा दिया गया। CJI ने साल्वे से कहा कि पश्चिम बंगाल में फिल्म पर प्रतिबंध का मुद्दा स्पष्ट है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब हाइकोर्ट ने सुनवाई के लिए तारीख़ लगा रखी है, हम इसमें हम क्यों दख़ल दें? हालांकि कोर्ट ने कहा हम इतना कर सकते हैं कि इस पेटिशन को पेंडिंग रखेंगे। अगर किसी वजह से हाइकोर्ट 3 जुलाई को सुनवाई नहीं करता, तब हम आपको यहां सुनेंगे। फिल्म प्रोड्यूसर की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा फिल्म के टीजर में 32 हजार लड़कियों को निशाना बनाए जाने वाली बात थी उसे हटा लिया गया है। हाईकोर्ट ने भी अपने आदेश में यह बात लिखी थी। केरल हाईकोर्ट ने भी फिल्म पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।

वहीं पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा पश्चिम बंगाल सरकार ने दंगे की आशंका के मद्देनजर फिल्म पर प्रतिबंध लगाया है। इस दलील पर सवाल उठाते हुए CJI ने कहा कि कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखना भी राज्य की ही जिम्मेदारी है। सिंघवी ने फिल्म के बैन पर कोर्ट को जानकारी देते हुए बताया कि फिल्म 5 मई से 8 मई तक सिनेमा घरों में लगाई गई थी। जहां राज्य सरकार ने सुरक्षा भी मुहैया कराई थी। जब खुफिया रिपोर्ट से गंभीर खतरे की जानकारी मिली। इसके बाद फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी।

सिंघवी ने दलील दी कि फिल्म में यह बडी चालाकी से बताया गया है कि य़ह सच्ची घटना पर आधारित नहीं है जबकि इसी फिल्म में और उसके बाद दो बार फिल्म को सच्ची घटना बताया गया है। CJI ने मामले पर सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि आप लोगों की असहिष्णुता के आधार पर अगर फिल्म बैन करने लगे तो लोग सिर्फ कार्टून या खेल ही देख पाएंगे। साथ ही CJI ने यह भी पूछा कि जब पूरे देश में फिल्म चल सकती है तो पश्चिम बंगाल में क्या समस्या है? अगर किसी एक जिले में कानून व्यवस्था की समस्या है तो वहां फिल्म बैन करिए।

CJI ने कहा कि एक जिले में समस्या होगी तो सभी जगह पर इस आधार पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने कहा यह जरूरी नहीं कि सभी जगह डेमोग्राफिक समस्या एक जैसी हो।आप मूल अधिकार को इस तरह से नहीं छीन सकते। CJI ने कहा राज्य की शक्ति का प्रयोग आनुपातिक होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने य़ह भी कहा कि किसी भी प्रकार की असहिष्णुता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के मौलिक अधिकार को भावनाओं के सार्वजनिक प्रदर्शन के आधार पर निर्धारित नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा कि भावनाओं के सार्वजनिक प्रदर्शन को नियंत्रित करना होगा अगर आपको यह पसंद नहीं है तो इसे न देखें। CJI ने कहा कि नियमों का उपयोग जनता की सहनशीलता पर लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार को शक्ति का प्रयोग संयम के आधार पर करना चाहिए और जनता की भावनाओं को नियंत्रित करना सरकार का विशेषाधिकार है लेकिन फिल्म पर ऐसे प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।

फिल्म पर बैन लगाने की मांग वाली एक याचिका पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि फिल्म को असली कहानी जैसा प्रोजेक्ट किया गया है और डिस्क्लेमर में कुछ और है। जो कि गलत है ऐसा नहीं किया जा सकता। इसपर CJI ने साल्वे से 32 हजार के आंकडे़ के बारे में पूछा। CJI को जवाब में साल्वे ने कहा कि इसका कोई प्रामाणिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि घटनाएं हुई हैं, यह विवाद का विषय नहीं है।

CJI ने पूछा कि लेकिन यहां बताया गया कि फिल्म कहती है कि 32 हजार महिलाएं गायब हैं। इसमें एक डायलॉग है। साल्वे ने जवाब दिया कि हम डिस्क्लेमर में यह बताने ने के लिए तैयार हैं कि इसका कोई प्रामाणिक डाटा उपलब्ध नहीं है। मामले पर सुनवाई के दौरान CJI ने पश्चिम बंगाल में फिल्म पर रोक हटाने का संकेत देते हुए कहा कि हम पश्चिम बंगाल के फिल्म पर बैन लगाने के फैसले पर रोक लगाएंगे। कोर्ट ने कहा कि थियेटर को सुरक्षा मुहैया कराना राज्य सरकार का काम है। जिसका पालन राज्य सरकार करे।

इसके अलावा फिल्म को सेंसर बोर्ड से मिले सर्टिफिकेट के मामले पर कोर्ट गर्मी की छुट्टी के बाद 18 जुलाई को मामले पर सुनवाई करेगा। वहीं 32 हजार महिलाओं के गायब होने के मामले पर निर्माता की ओर से कहा गया कि वो 20 मई तक वह डिस्कलेमर देंगे कि 32 हजार महिलाओं के गायब होने के लिए कोई प्रामाणिक सत्यापित डाटा नहीं है। साथ ही साल्वे ने सुनवाई के दौरान CJI से कहा कि आप फिल्म जरूर देखें। अगर कोर्ट कहेगा तो पीड़ितों और उनके परिजनों के इंटरव्यू से संबंधित वीडियो भी हम दे सकते हैं।

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