जम्मू-कश्मीर में  हिंदुओं, सिखों, बौद्धों को अल्पसंख्यकों के लाभ देने और अल्पसंख्यक आयोग बनाने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने आठ हफ्ते के लिए सुनवाई टाल दी है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगवाई वाली पीठ के सामने केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि यह गंभीर मामला है और नतीजे पर पहुचने के लिए राज्य सरकार से बातचीत चल रही है। याचिकाकर्ता ने सरकार की इस दलील का विरोध किया और कहा कि सरकार जानबूझकर मामले को लटका रही है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को 3 महीने में रिपोर्ट देने को कहा था

क्या है मामला ?

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि राज्य में 68 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों को मिलने वाले सारे लाभ ले रहे हैं जबकि राज्य में दूसरे समुदाय अल्पसंख्यक हैं और मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और इसलिए सही मायनों में यह सुविधांए अल्पसंख्यक हिंदुओं को भी मिलनी चाहिए ।

याचिका में याचिकाकर्ता अंकुर शर्मा की तरफ से इस बात का भी जिक्र किया गया है कि पिछले 50 साल से जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों की आबादी को लेकर कोई गणना नहीं की गई है और ना ही राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि राज्य में अल्पसंख्यक आयोग भी बनाया जाना चाहिए।

केंद्र और याचिकाकर्ता की तमाम दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगवाई वाली बेंच ने सुनवाई आठ हफ्ते के लिए टाल दी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने सरकार पर देरी करने का आरोप लगाया था जिसपर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि विधायिका नीति बनाने के मामले में कैसे काम करे इस पर अदालत कैसे आदेश दे सकती है।

जम्मू-कश्मीर के अलाव लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में भी हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग है।

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